शुक्र भृगुनन्दन

Venus:

1420762.jpg

artists and musicians, entertainment, celebrities, fashion, culture, beauty, women, high society, money.

लक्ष्मी का रूप शुक्र

Astrobhadauria046.jpg

एक ही ग्रह इस भचक्र में शामिल है,जिसे प्यार औकात का अधिकारी माना जाता है। शुक्र ग्रह को वैदिक अथवा पश्चिमी ज्योतिषाचार्यों ने स्त्री ग्रह का दर्जा दिया है। शुक्र को वास्तव में स्त्री ग्रह का दर्जा तो दिया गया है,लेकिन इसका वास्तविक प्रभाव प्रत्येक जीवधारी में बराबर का मिलता है,पुरुष के अन्दर स्त्री अंगों की उपस्थिति भी इस ग्रह का भान करवाती है। जिस प्रकार से मंगल की गर्मी गुसा और उत्तेजना को पुरुष और स्त्री दोनो के अन्दर समान भाव में पाया जाना है,उसी प्रकार से शुक्र का प्रभाव स्त्री और पुरुष दोनो के अन्दर समान भाव में पाया जाता है।

शुक्र आनन्द और सुन्दरता का प्रदाता

Astrobhadauria050.jpg

शुक्र को आनन्द का ग्रह कहा जाता है,वैसे सभी ग्रह अपने अपने प्रकार का आनन्द प्रदान करते है,सूर्य राज्य का आनन्द प्रदान करवाता है,मंगल वीरता और पराक्रम का आनन्द प्रदान करवाता है,चन्द्र भावुकता का आनन्द देता है,बुध गाने बजाने का आनन्द देता है,गुरु ज्ञानी होने का आनन्द देता है,शनि समय पर कार्य को पूरा करने का आनन्द देता है। शुक्र आनन्द की अनुभूति जब देता है,जब किसी सुन्दरता के अन्दर प्रवेश हो,भौतिक रूप से या महसूस करने के रूप से,जैसे भौतिक रूप से किसी वस्तु या व्यक्ति को सुन्दरता के साथ देखा जाये,महसूस करने के रूप से जैसे किसी की कला का प्रभाव दिल और दिमाग पर हावी हो जावे।शुक्र आनन्द के साथ दर्द का कारक भी है,जब हम किसी प्रकार से सुन्दरता के अन्दर प्रवेश करते हैं तो आनन्द की अनुभूति होती है,और जब किसी भद्दी जगह या बुरे व्यक्ति से सम्पर्क करते है तो कष्ट भी होता है। इसी अनुभूति का एक उदाहरण मेरे सामने आया कि मै एक पागलखाने के डाक्टर के पास बैठा था,उसी समय एक खूबशूरत महिला को लाया गया,उसे देखकर अच्छा लगा(यह शुक्र का भौतिक रूप सामने था),लेकिन जब उसके बारे में उसके परिजनो ने बताया कि वह पागल है,और कोई भी हादसा कर सकती है,यह सुनकर दिल में पीडा हुयी कि एक महिला के अन्दर जो इतनी सुन्दर है,यह बीमारी है (यह शुक्र की आन्तरिक अनुभूति थी),उसी समय डाक्टर ने अपने सहायकों को बुलाया,और उसके मस्तक में शार्ट देने के लिये करेंट लगाया,सहायकों ने उसे जबरदस्ती भींच लिया,और अचानक इस भींचने की क्रिया में वह सुन्दर महिला एक दम भयभीत हो गयी,और करेंट को माथे में लगाते ही बहुत जोर से चीखी और बेहोश हो गयी,डाक्टर और सहायकों पर उसका कोई असर नही था,क्योंकि उनकी क्रिया इसी प्रकार से सभी मरीजों के साथ हुआ करती थी,और उनकी यह भावना भी हर बार करेंट देने में होती है कि इसके बाद व्यक्ति साधारण रूप से ठीक हो जायेगा,भले ही उसे शरीर में कितनी ही पीडा सहनी पडे,और जब वह महिला बेहोश हो गयी तो एक अन्जानी से पीडा काफ़ी देर तक दिल और दिमाग में छायी रही,कि या तो भगवान इस सुन्दर महिला को जन्म नही देता,और जन्म दिया था तो इस प्रकार की बीमारी नही देता,और बीमारी भी उसके किसी कर्म के अनुसार दी थी,तो उसको साधारण तरीके से ठीक भी होना चाहिये था,इस प्रकार की मनोभावनात्मक पीडा का पैदा होना भी शुक्र की देन है,जो चन्द्र और शुक्र के मिले जुले प्रभाव के साथ मंगल की खुली अविभूति मानी जा सकती है।

शुक्र एक तेज कारक ग्रह है

Astrobhadauria057.jpg

दूसरे ग्रहों की तरह से शुक्र के संबन्ध में पुराणों में अनेक रोचक उदाहरण मिलते है,मत्स्य पुराण के अनुसार शुक्र भृगु ऋषि के पुत्र है,उनकी माता का नाम ख्याति था। इन्द्र की पुत्री जयंती से शुक्र का विवाह हुआ था,इनकी दूसरी पत्नी जो गो है,व्ह पितरों की कन्या थी,उनकी गो नामक पत्नी से त्वष्ठा वरुत्री शंड और अमर्क नामक चार पुत्र पैदा हुये थे,शुक्र को दानवों का पुरोहित कहा जाता है,शुक्र ने अपने तपोबल से मृत संजीवनी विद्या प्राप्त की थी,इसी विद्या के बल पर शुक्र मृत दानवों को पुन: जीवित कर देते थे,बृहस्पति के पुत्र कच ने शुक्र का सानिध्य पाकर उनके शिष्य बन गये थे,और उनकी पुत्री देवयानी की सेवा करने के बाद मृत संजीवनी विद्या प्राप्त की थी,शुक्र ने एक हजार वर्ष वाले भयंकर धूम्रवत को सम्पन्न कर शिव से वरदान प्राप्त किया था। शिव ने उन्हे वरदान दिया कि वे अपने तप बुद्धि शास्त्र ज्ञान बल और तेज से समस्त देवताओं को पराजित करेंगे। ब्रह्मा की प्रेरणा से शुक्र ने ग्रह का रूप धारण किया था। यह शास्त्र कथा है,शास्त्र कथाओं का उद्देश्य केवल कथा के रूप में याद करवाने की क्रिया होती है,उस कथा का अर्थ और कहीं जा कर निकलता है।

खगोलीय विज्ञान में शुक्र

Diamond%20with%20Evil%20shoot.JPG

सूर्योदय या सूर्यास्त के समय तीव्र द्युति वाले इस ग्रह को प्रत्यक्ष देखा जा सकता है,इसलिये इसे भोर का तारा या साध्य तारा भी कहते हैं। सूर्य से शुक्र की मध्यम दूरी ६७२००००० मील है,इसका आकार पृथ्वी जैसा ही है। पृथ्वी का भूमध्यीय व्यास ७९२७ मील है,और शुक्र का ७७०० मील है। २१८ मील प्रति सेकेण्ड की गति से शुक्र सूर्य की एक परिक्रमा २४४ दिन ७ घंटे में पूरी करता है।

ज्योतिष में शुक्र

Image005.jpg

ज्योतिष शास्त्र में शुक्र को गुरु की भांति ही नैसर्गिक शुभ ग्रह की उपाधि प्रदान की गयी है। शुक्र स्त्री ग्रह है,जल का स्वामी,ब्राह्मण जाति,रजोगुणी शुभ्र ग्रह है। इसमे भी चन्द्रमा की तरह से सफ़ेद किरणें दिखाई देती है,शरीर में इसका स्थान जीभ तथा जननेन्द्रिय है। यह इन स्थानों से जीव को सब रसों का रसास्वादन कराता है,अर्थात सभी प्रकार के रसों का स्वाद जीभ से और मैथुन के समय जननेन्द्रिय को तिक्त और चरपरा आभास करवा कर आनन्द की अनुभूति प्रदान करता है। शुक्र के अस्त होने के समय कोई शादी सम्बन्ध जैसा शुभ कार्य नही किया जाता है,जातक का शुक्र कुंडली में अस्त होता है,तो तमाम प्रकार के वीर्य विकार पाये जाते है,पुरुष की कुन्डली में सूर्य के साथ शुक्र होने पर संतान बडी मुश्किल से पैदा होती है,और अधिकतर गर्भपात के कारण देखे जाते है,स्त्री की कुन्डली में शुक्र और मंगल की युति होने पर पति पत्नी हमेशा एक दूसरे से झगडते रहते है,और जीवन भर दूरियां ही बनी रहती है। अक्सर शुक्र अस्त वाला जातक पागलों जैसी हरकतें किया करता है,उसके दिमाग में बेकार के विकार पैदा हुआ करते है,वह बेफ़जूल के संकल्प मन में ग्रहण किया करता है,और उन संकल्पं के माध्यम से अपने आसपास के लोगों को परेशान किया करता है। शुक्र की धातु के लिये कोई भी धातु जिस पर कलाकारी और खूबशूरती का जामा पहिनाया गया हो मानी जाती है,अनाजों और सब्जियों तथा फ़लों में इसके स्वाद के साथ पकाने और प्रयोग करने की क्रिया को माना गया है। शुक्र ग्रह के कारण पैदा किसी भी बीमारी के लिये जातक को भूत-डामर तंत्र के अनुसार तुलादान करना चाहिये,तुलादान में प्रयोग किये जाने वाले कारकों में सफ़ेद वस्त्र चावल फ़ल पका हुआ स्वच्छ अन्न प्रयोग किया जाता है। शुक्र मीन राशि में उच्च का और कन्या राशि में नीच का माना जाता है।

शुक्र के नक्षत्र

Image028.jpg

शुक्र के नक्षत्रों में पाराशर होरा शास्त्र के अनुसार भरणी,पूर्वाषाढ,और पूर्वा फ़ाल्गुनी नक्षत्र बताये गये है,भरणी नक्षत्र के अनुसार जो महिलायें इस नक्षत्र में जन्म लेती है,वे किसी न किसी प्रकार से दूसरी महोलाओं के प्रति किसी न किसी प्रकार की कमी निकालने में माहिर मानी जाती है,तथा पुरुषों में नीचे के अंगों में किसी न किसी प्रकार की कमजोरी मिलती है,और इस नक्षत्र में पैदा हुये जातकों के प्रति दूसरे लोग अपने अपने अनुसार छिद्रान्वेषण किया करते हैं। इस नक्षत्र के पहले पद में जन्म लेने वाला जातक अपने भाई बहिनों के द्वारा खूब सम्मानित किया जाता है,जातक या जातिका के पास काफ़ी वाहन होते है,और जीवन भर वाहनों के द्वारा वह सुखी रहता है,पहले पद में जन्म लेने वाला जातक हमेशा आज की सोचता है,और कल की उसे चिन्ता नही होती है। दूसरे पद में जन्म लेने वाला जातक या तो सम्पत्ति अपने ननिहाल से प्राप्त करता है,अथवा वह अपनी सेवा से दूसरों से प्राप्त करता है,अपने विचारों को दूसरों के साथ मिलाकर चलता है,और विचारों का आधुनिक तरीकों से आदान प्रदान भी करता है। तीसरे पद में जन्म लेने वाले जातक होटल कृषि रसायनों आदि के बारे में काफ़ी जानकार बनता है,चौथे पद में जन्म लेने वाला जातक या तो नदी के किनारों पर या बन्दरगाहों पर अपना काम करता है,या रहने के लिये निवास बनाता है। अथवा पानी के जहाजों पर अपना कार्य करता है,और सामान को भेजने और मंगाने के काम में माहिर होता है।पूर्वाषाढ नक्षत्र में पैदा होने वाले महिला जातकों में वे खूबसूरती की मिसाल मानी जाती है,जबकि पुरुष दूसरों की सेवा करने के लिये हमेशा आगे रहते है,इस नक्षत्र के चारों पदों में जन्म लेने वाले जातक कार्य शैली में अपने प्रकार के ही माने जाते है,उनको अधिकतर अपनी माताओं का दुख किसी न किसी प्रकार से झेलना पडता है। इसी प्रकार से अन्य नक्षत्रों के बारे में आप वैदिक ज्योतिष की किताबों में देख सकते है।

शुक्र की राशियां

वृष और तुला शुक्र की राशियां है,वृष राशि भौतिक सुखों की तरफ़ अग्रसर करती है,और तुला राशि शारीरिक सुखों की तरफ़ अपना प्रभाव देती है,वृष राशि वाले जातक मेहनती और सोच समझ कर काम करने वाले होते है,उनका उद्देश्य मात्र धन कमाना होता है,और धन वाले मामलों में अपनी सोच रखते है,जबकि तुला राशि वाले जातक अपने आसपास के माहौल के साथ जो भी करते है,आपस का सामजस्य बिठाने के काम करते है,तराजू की तरह तौल कर अपना काम करते है,और न्याय के साथ व्यापारिक गतिविधियों की तरफ़ अपना प्रभाव दिखाते है,तुला राशि का स्थान कालपुरुष के अनुसार विवाह जीवन साथी और साझेदार के अनुसार देखा जाता है,जबकि वृष राशि वाले जातक अगर अपने पास पूजा पाठ या किसी प्रकार से रहने वाले साधनो में धार्मिक विश्वास के साथ चलें तो उनका जीवन सुखी रहता है,इस प्रकार के कथन "मानसागरी" नामक ग्रंथ में कहे गये हैं।

हाथ की रेखाओं में शुक्र

महिलाओं के बायें हाथ में और पुरुषों के दाहिने हाथ में शुक्र का स्थान अंगूठे के नीचे माना जाता है,एक ऊंचा स्थान अंगूठे के नीचे होता है,वही शुक्र का स्थान होता है,शुक्र पर्वत के नाम से जाने वाले इस स्थान से जातक की शुक्र की क्षमता का ज्ञान किया जा सकता है,जितना साफ़ और लालिमा लिये यह स्थान होता है,उतना ही जातक धनी और आराम पसंद होता है,इस पर्वत पर जितनी आडी तिरछी रेखायें होती है,उतनी ही परेशानियां जातक को धन कमाने के अन्दर आती है। जीवन रेखा से ऊपर यह स्थान जीवन रेखा के निकास से जो कि मंगल का स्थान माना जाता है,से शुरु होकर जीवन रेखा की समाप्ति पर जो कि राहु का स्थान माना जाता है,वहां पर समाप्त होता है,शुक्र एक पहाड की तरह से हाथ पर होता है,और जीवन रेखा इस पहाड के नीचे से बहने वाली नदी के रूप में मानी जाती है। इस रेखा से जितनी रेखायें शुक्र पर्वत पर ऊपर की तरफ़ जा रही होती है,उतनी ही कमाई की सहायक नदियां जीवन में अलग अलग समय में अलग अलग तरीकों से धन और कार्य की उत्पत्ति का वृतांत बताती है,और जितनी रेखायें जीवन रेखायें नीचे की तरफ़ जा रही होती है,उतनी ही खर्च करने की रीतियां जीवन के अन्दर आ रही होती है,शुक्र पर्वत पर जाल राहु का प्रभाव बताता है,चौकोर चिन्ह गुरु का प्रभाव बताता है,सीधा त्रिकोण पुरुष संतान का द्योतक होता है,जो मंगल के रूप में जाना जाता है,और उल्टा त्रिकोण स्त्री संतान का प्रभाव बताता है,एक समान्तर रेखा अगर शुक्र पर्वत के नीचे जीवन रेखा के साथ अगर जाती है तो कोई बुरी बला ऊपर से आने वाले भाग्य को रोकती है। शुक्र पर्वत पर जितने द्वीप होते है,उतने ही मकान जातक के पास पाये जाते हैं।

अंकशास्त्र में शुक्र

अंकविद्या में ६ का अंक हम शुक्र के लिये प्रयोग करते है,जिस तारीख को जातक का जन्म हुआ होता है,वही अंक जातक का भाग्यांक होता है,जो जातक ६,१५,२४ तारीखों में पैदा हुये होते है,उनका स्वामी शुक्र माना जाता है। ऐसा जातक अपनी कार्योजनाओं को द्रढता पूर्वक पूरा करता है,और वह प्रकृति से प्रेमी होता है,उसका व्यक्तित्व आकर्षक होता है,वह अपने प्रेमी पर सर्वस्व अर्पित कर देता है। अर्थात किसी प्रकार का छल कपट इस तारीख को जन्मे जातक के ह्रदय के अन्दर नही होता है,इस प्रकार के जातक को देखने वाले और कुछ ही सनझ बैठते है,लेकिन वह किसी के प्रति दुर्भावना नही रखता है,वह गणमान्य और कलाकार होता है और इसी प्रकार के व्यक्तियों पर अपना धन खर्च करने में अपनी दूरदर्शिता समझता है,इस प्रकार के राग द्वेश ईर्ष्या से सख्त नफ़रत करते है,इस प्रकार का जातक किसी प्रकार विरोध और दुर्भावना का शिकार कभी कभी ही होता है,दूसरों को पटाने में सिद्ध हस्त होता है,अगर ३,६,९,१२,१५,१८,२४,२७ और ३० तारीखों में शुक्रवार का दिन हो तो जातक के विशेष शुभ होता है। जिन जातकों का जन्म ६ तारीख के जोड में हुआ हो वे शुक्र की पूजा अर्चना करने के बाद जाप करें तथा हीरा या जर्किन नामका पत्थर धारण करें,फ़िरोजा साढे पांच रत्ती का भी लाभदायक होता है। शुक्र प्रधान व्यक्ति प्राय: सुखी होते है,संगीत काव्यकला मनोरंजन में अधिक मन लगाते है,लडाई दंगे में मन नही लगाते है,और जल्दी किसी पर विश्वास भी नही करते है,हंसी मजाक करने वाले स्वच्छ वस्त्र धारण करने वाले बुद्धिमान विनम्र चतुर प्रसन्नचित्त कला प्रेमी शांति प्रिय सौन्दर्य के उपासक धन की इच्छा रखने वाले एवं भाग्यशाली होते है,वह देखते ही आदमी को पहिचान लेते है,कि वह क्या चाहता है,इस प्रकार के जातक गायन वादन अभिनय की शिक्षा प्राप्त करते है,उनका सुन्दर चेहरा रसीली बातें आकर्षण का केन्द्र होती है,वे काम प्रधान होते है,शुक्र प्रधान जातक इश्कबाज चंचल मद्यपानी एवं स्त्रियों से लाभ कमाने वाले होते है,खट्टी वस्तुयें के बहुत शौकीन होते है,स्वभाव से भुलक्कड और तर्क वितर्क में दक्ष अधिक कामी स्वार्थी जैसे तैसे वह धन प्राप्त करने वाले होते है,सौम्य भोगी एवं सरल ह्रदय के स्वामी होती है,वे सौन्दर्य प्रसाधनों का अधिक उपयोग करते है,और स्त्री पुरुषों को और पुरुष स्त्रियों को प्रिय लगते हैं।

शुक्र से सम्बन्धित रोग

शुक्र जनन सम्बन्धी रोग अधिक पैदा करता है,स्त्रियों में रज और पुरुषों में वह वीर्य का मालिक होता है,शुक्र जब खराब फ़ल देता है,तो जातक को प्रमेह मन्दबुद्धि वीर्य और रज विकार नपुंसकता और जननेन्द्रिय सम्बन्धी रोग होते है। यदि किसी प्रकार से दवाई के प्रयोग करने के बाद भी रोग का अन्त नही हो तो समझना चाहिये कि कुन्डली में शुक्र किसी न किसी प्रकार से खराब है,और शुक्र का समय भी चल रहा होता है मान लेना चाहिये। शुक्र का प्रभाव जब अच्छा होता है तो जातक के पास जमीन जो खेती के काबिल होती है,प्राप्त होती है,स्त्री सम्बन्धी सुख प्राप्त होता है,घर की सजावटें होने लगती है,कम्प्यूटर और टीवी घर में अपना स्थान बना लेते है,व्यक्ति का नाम मीडिया में चमकने लगता है।

शुक्र के रत्न और उपरत्न

शुक्र के रत्नों में हीरा करगी और सिम्मा का नाम मुख्य माना जाता है। हीरा संसार प्रसिद्ध है,करगी कहीं कहीं ही मिलती है,और सिम्मा जिसका दूसरा नाम जरकन है,कृत्रिम रूप से बनाया हुआ पत्त्थर है। इन रत्नों में हीरा सबसे महंगा रत्न है,और सेन्ट के हिसाब से मिलता है,सवा पांच रत्ती का हीरा बहुत महंगा होता है,इसलिये इनको ६ की संख्या में या नौ की संख्या में लेकर सोने की अंगूठी में जडवा लेना चाहिये,और मध्यमा उंगली में शुक्रवार के दिन जब भरणी नक्षत्र हो उस दिन शुक्र के मन्त्र का जाप करते हुये धारण करना चाहिये,रत्न की विधि विधान से प्राण प्रतिष्ठा नही हो जाती है,तब तक वह पूर्ण प्रभाव नही दे पाता है,जब तक उसकी प्रतिष्ठा नही की जाती है,वह केवल पत्थर है,जिसे प्रकार से मंदिर में किसी प्रतिमा को लगा दिया जाये और उसकी प्राण प्रतिष्ठा नही हो,तब तक वह केवल पत्थर का तरासा हुआ रूप ही समझा जायेगा।

शुक्र की जडी बूटियां

शुक्र के लिये जो जातक हीरा धारण नही कर पाते है वे शुक्रवार को सरपोंखा की जड भरणी नक्षत्र में सफ़ेद धागे में पुरुष दाहिने और स्त्री बायें बाजू में बांध कर शुक्र का जाप करें,इससे भी जातकों को शुक्र का फ़ल प्राप्त होना शुरु हो जाता है। सरपोंखा के साथ अरंड की जड को भी शुक्र की जडी माना गया है,अरंडी के फ़ल की सफ़ेद रंग की मिगी को लेकर उसे गर्म पानी के साथ डालने पर जो तेल पानी के ऊपर छहरा जाता है,उसे नित्य माथे से लगाने पर और शुक्र के रोगों में उसे पीने पर जातक को शुक्र सम्बन्धी विकार खत्म होते हैं।

शुक्र के लिये दान

भरणी पूर्वाफ़ाल्गुनी पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र में स्वयं के वजन के बराबर चावल उसमे थोडी सी चांदी थोडा सा घी सफ़ेद वस्त्र चन्दन दही गंध द्रव्य चीनी हीरा या जरकन सफ़ेद फ़ूल मिलाकर दान करना चाहिये,किसी बडी पीडा में गोदान भी किया जाता है,गोदान करने के लिये जहां पर गाय का दान करना संभव नही है,वहां पर सवा गज सफ़ेद कपडे में सवा सेर चावल और सफ़ेद चन्दन को रख कर बांध लिया जाता है,उसे संकल्प के साथ किसी ब्राह्मण को दक्षिणा सहित दान कर दिया जाता है।

शुक्र से जुडे व्यापार

हीरे का व्यापार,आभूषणों के बनाने और आयात निर्यात करने का काम,लेन देन करने का काम, ब्याज के काम,इत्र सुगन्धित तेल साबुन सोडा मनिहारी फ़ैंसी स्टोर का काम फ़िल्म बनाने का काम फ़ूलों से जुडे काम फ़र्नीचर और पुरातत्व वस्तुओं का व्यापार पशुधन की बिक्री और खरीद का काम शराब बनाने का और बेचने का काम कलाकारी और सौन्दर्य से जुडी वस्तुओं का काम आदि माने जाते हैं।

शुक्र से सम्बन्धित नौकरी

फ़िल्मी पत्रिका संपादन,मूवी बनाना,कम्प्यूटर से एनीमेशन बनाना, बेबसाइट बनाना,अभिनेता या अभिनेत्री बनकर दूसरों की फ़िल्मों में काम करना,फ़िल्मी गीत और कहानी लिखना डायरेक्टर बनकर काम करना संगीत निर्देशक का काम करना फ़िल्म वितरक बनकर कमीशन कमाना संगीत की शिक्षा देना नाचने का काम करना,आकाशवाणी की नौकरी करना,टीवी में कलाकारी का काम करना हड्डियों के जोडने और तोडने का काम करना नर्सिंग की ट्रेनिंग देना पुरातत्व विभाग की नौकरी करना आदि नौकरियां शुक्र के क्षेत्र में आते हैं।

शुक्र का वैदिक मंत्र

शुक्र के वैदिक मंत्र को प्रयोग करने के लिये वैदिक रीति से ही उसे अपनाया जाता है,और इसे प्रयोग करते वक्त अक्षर और शब्द को मिलाकर जीभ को शरीर रूपी मशीन का बटन मानकर उच्चारण करने से आशातीत फ़ायदा मिलता देखा गया है। शुक्र के वैदिक मंत्र को प्रयोग करते समय जो विधि प्रयोग की जाती है वह इस प्रकार से है:-

शुक्र के वैदिक मंत्र का विनियोग

अन्नात्परिस्त्रुतेति मन्त्रस्य प्रजापतिऋषि:,अनुष्टुप छन्द:,शुक्रो देवता,शुक्रप्रीत्यर्थे जपे विनियोग:।

शुक्र के वैदिक मंत्र को प्रयोग करते समय देहांगन्यास

अनात्परिस्त्रुत: शिरसि (सिर)। रसं ब्रह्मणा ललाटे (माथा)। व्यपिबत्क्षत्रं मुखे (मुख)। पय: सोमं ह्रदये (ह्रदय)। प्रजापति: नाभौ (नाभि)। ऋतेन सत्यं कट्याम (कमर)। इन्द्रियं विपान र्ठं गुदे (गुदा)। शुक्रं वृषणे (लिंग)। अन्धस ऊर्वो: इन्द्रस्येन्द्रियं जानुनो: (घुटने)। इदं पय: गुल्फ़यो: (गुल्फ़)। अमृतं मधु पादयो: (पैर)।

शुक्र के वैदिक मंत्र को प्रयोग करते समय करन्यास

अन्नात्परिस्त्रतो रसं अंगुष्ठाभ्याम नम:। ब्रह्मणा व्यपिबत्क्षत्रं तर्ज्जनीभ्याम नम:। पय: सोमम्प्रजापति: मध्यमाभ्याम नम:। ऋतेन सत्यमिन्द्रियं अनामिकाभ्याम नम:। विपानर्ठ: शुक्रमन्धस कनिष्ठिकाभ्याम नम:। इन्द्रस्येन्द्रियमिदम्पयोमृतं मधु करतल पृष्ठाभ्याम नम:।

शुक्र के वैदिक मंत्र को प्रयोग करते समय ह्रदयादिन्यास

अन्नात्परिस्त्रतो रसं ह्रदयाय नम:। ब्रह्मणा व्यपिबत्क्षत्रं शिरसे स्वाहा:। पय: सोमम्प्रजापति: शिखायै वषट। ऋतेन सत्यमिन्द्रियं कवचाय हुम। विपानर्ठ: शुक्रमन्धस नेत्रत्राय वौषट। इन्द्रस्येन्द्रियमिदम्पयोमृतं अस्त्राय फ़ट।

शुक्र के वैदिक मंत्र को प्रयोग करते समय ध्यान का मंत्र

श्वेताम्बर: श्वेतवपु: किरीटी चतुर्भुजो दैत्यगुरु: प्रशान्त:। तथाऽक्षसूत्रंच कमण्डलुंच दण्डंच बिभ्रद्वरदोऽस्तु मह्यम॥

शुक्र के वैदिक मंत्र को प्रयोग करते समय शुक्र-गायत्री का प्रयोग

ऊँ भृगुवंशजाताय विद्यमहे श्वेतवाहनाय धीमहि तन्न: कवि: प्रचोदयात॥

शुक्र का वैदिक मंत्र

ऊँ द्रां द्रीं द्रौं स: भूर्भुव: स्व: ऊँ अन्नात परिस्त्रुतो रसम्ब्रह्मणा व्यापिबत्क्षत्रम्पय: सोमं प्रजापति:। ऋतेन सत्यमिन्द्रियं व्विपानर्ठं शुक्रमन्धसऽइन्द्रस्येन्द्रियमिदम्पयो मृतम्मधु। ऊँ स्व: भुव: भू: ऊँ स: द्रौं द्रीं द्रां ऊँ स: शुक्राय नम:॥

शुक्र का वैदिक जाप मंत्र

ऊँ द्राँ द्रीँ द्रौँ स: शुक्राय नम:। इस मंत्र का उपरोक्त विधि से १६००० प्रतिदिन,सोलह दिन तक लगातार शुक्र के नक्षत्र से शुरु करने के बाद लगातार जारी रखा जाना चाहिये,जिव्हा का अभ्यास सोलह दिन में पूरा हो जाता है,उसके बाद रोजाना त्रिसंध्या (सुबह दोपहर शाम) में कम से कम एक माला का जाप(१०८ बार) शुक्र के बुरे प्रभाव को रोकने और सुख समृद्धि को बढाने के लिये करना चाहिये।

शुक्र का स्तवराज

जो लोग वैदिक मंत्र को क्रिया से नही कर सकते है,और अपनी श्रद्धा से शुक्र का जाप करना चाहते है,अथवा आज की भौतिक जिन्दगी में उनके पास फ़ुर्सत नही है,तो शुक्र स्तवराज को सोलह दिन तक देश काल और परिस्थिति के अनुसार १०८ बार और उसके बाद नित्य तीन बार पाठ करने से भी फ़ायदा मिलता है।

अस्य श्रीशुक्रस्त्वराजस्य प्रजापतिऋषि: अनुष्टुप छन्द:। शुक्रो देवता शुक्रप्रीत्यर्थम जपे विनोयोग:॥
नमस्ते भार्गव श्रेष्ठ दैत्य दानव पूजित:। वृष्टि रोध प्रंकत्रे च वृष्टि कत्रे नमो नम:॥
देवयानि पित: तुभ्यम वेद वेदांग पारग। परेण तपसा शुद्ध: शंकर: लोक सुन्दर:॥
प्राप्त: विद्यां जीवनाख्यां तस्मै शुक्रात्मने नम:। नम: तस्मै भगवते भृगु पुत्राय वेधसे॥
तारा मण्डल मध्यस्थ स्व भासा सित अम्बर। यस्य उदये जगत सर्वम मंगलं अर्ह भवेत इह॥
अस्तम य: ते हि अरिष्टम स्यात तस्मै मंगल रूपिणे। त्रिपुरा वासिन: दैत्यान शिव बाण प्रपीडितान॥
विद्याया अजीवय: शुक्र: नमस्ते भृगु नन्दन। ययाति गुरुवे तुभ्यम नमस्ते कवि नन्दन॥
बलि राज्य प्रद: जीव: तस्मै जीवात्मने नम:। भार्गवाय नम: तुभ्यम पूर्व गीर्वाण वन्दित:॥
जीव पुत्राय य: विद्याम प्रादात तस्मै नम: नम:। नम: शुक्राय काव्याय भृगुपुत्राय धीमहि॥
नम: कारण रूपाय नमस्ते कारणात्मने। स्तवराजम इमम पुण्यम भार्गवस्य महात्मन:॥
य: पठेत श्रुणुयात वा अपि लभते वांछितं फ़लम। पुत्रकाम: लभेत पुत्रान श्रीकाम: लभते श्रियम॥
राज्यकम: लभेत राज्यं स्त्रीकाम: स्त्रियम उत्तमाम। भृगुवारे प्रयत्नेन पठितव्यम समाहितै:॥
अन्य वारे तु होरायाम पूजयेत भृगु नन्दनम। रोगार्त: मुच्यते रोगात भयार्त: मुच्यते भयात॥
यत यत प्रार्थयते जन्तु: तत तत प्राप्नोति सर्वदा। प्रात:काले प्रकर्तव्या भृगु पूजा प्रयत्नत:॥
सर्वं पाप विनिर्मुक्त: प्राप्नुयात शिव सन्निधिम। नमस्ते भार्गव श्रेष्ठ दैत्य दानव पूजित:॥

शुक्र क्यों प्रताडित करता है?

पिछले संदर्भों में हमने शुक्र की महिमा का अलग अलग रूप से वर्णन किया है। इस संदर्भ में हम यह बताना चाहेंगे कि शुक्र अति शुभ ग्रह है,लेकिन यह जातक को महान कष्टों के सागर में क्यों और किस प्रकार से फ़ेंक देता है। क्यों जातक को कष्ट प्रदान करता है,क्यों कष्टों की बौछार शुक्र करता है,या प्राणी अपने किये हुये अशुभ कर्मों का ही फ़ल जन्म जन्मानतर सुख दुख रूप में प्राप्त करता है। शुक्र क्यों रति सुख नही लेने देता,क्यों रति सुख से वंचित कर देता है। सारा वैभव होते हुये उस वैभव का सुख नही लेने देता,आदि तत्वों का सूक्षम प्रमाणिक स्पष्ट शास्त्रोलिखित सरस व्याख्या यहां करेंगे।
शुक्र अति शुभ ग्रह है,शुक्र भगवान शंकर की घनघोर तपस्या कर वरदान में अमरत्व तथा मृतसंजीवनी विद्या प्राप्त की,यही कारण था कि शुक्र मरे हुये राक्षसों को पुन: जीवित कर देते थे। शुक्र प्राणीमात्र के ब्रह्मरन्ध्र में अमृत संचार करता है। दूसरा वरदान शुक्र के पास भगवान शंकर का यह था कि गुरु बृहस्पति से तीन गुना बल अधिक था,और उसी बल के द्वारा उसने अतुलित बल और वैभव की प्राप्ति कर ली थी। अर्थात जो भी संपत्ति कोई कथिन परिश्रम से प्राप्त करे उसे वह साधारण से मार्ग से प्राप्त कर ले। तीसरा वरदान उसे शंकरजी से यह मिला कि सभी ग्रह ६,८,१२ भाव में बलहीन हो जाते है,और अपना प्रभाव नही दे पाते है,लेकिन शुक्र को वरदान मिला कि ६ भाव को छोडकर वह ८ और १२ में और अधिक बलवान हो जायेगा,और जातक को जो शुक्र को मानेगा और जानेगा,उसे अनुलित सम्पत्ति का मालिक बना देगा। चौथा वरदान भगवान शंकर ने उसे दिया कि जो भी उसे मानेगा,उसकी सेवा और पूजा करेगा उसे वह उच्च पदासीन कर देगा,और कुशल प्रशासक बना देगा,यह चार वरदान भगवान शंकर से शुक्र को प्राप्त हुये।
कामकला रति सुख शुक्र की कृपा से प्राप्त होता है,यदि शुक्र जीव को कामोत्तेजक नही करे,तो संसार की उत्पत्ति ही समाप्त हो जावे,यद्यपि रति का स्वामी कामदेव है,लेकिन बगैर शुक्र के वह भी नीरस है। जन्मांक में जब शुक्र भा ६ में या अस्त होता है,या शुक्र हाथ के पर्वत में नीचे बैठ जाता है,तो जातक को संतान सुख नही प्राप्त होता है,उसका कारण जातक के वीर्य में शुक्राणुओं की कमी मानी जाती है। और यह प्रभाव शुक्र जातक को पिछले अनैतिक कार्यों की वजह से देता है। शुक्र के अस्त हो जाने से शादी विवाह आदि सभी मंगल कार्य जो संतान को बढाने वाले होते है बन्द हो जाते है,और लोग उस समय को तारा डूबने का समय कहते है,भगवान शुक्राचार्य दैत्य गुरु है,दैत्य दानवों पर इनकी नित्य कृपा बनी रहती है,महाराजा बलि का नाम शास्त्रों में लिखा मिलता है,की सहायता के लिये शुक्राचार्य ने भगवान विष्णु को बामन अवतार धारण करते वक्त पृथ्वी को दान में न देने के लिये अपनी एक आंख कमंडल में संकल्प के लिये जल नही आने देने के लिये फ़ुडवा ली थी। तभी से शुक्र का रूप एक आंख का माना जाता है,तभी से कहा जाने लगा है कि माया के एक आंख होती है,वह या तो आती नही और आती है तो टिकाने के लिये एक ही लक्षय को याद रखना पडता है,या तो अच्छा या फ़िर बुरा। शुक्र के सम्बन्ध के बारे में एक कथा और प्रचलित है कि जो व्यक्ति भोर का तारा यानी शुक्र के उदय के समय जागकर अपने नित्य कर्मों में लग जाता है,वह तो लक्ष्मी का धारक बन जाता है,और जो व्यक्ति सूर्योदय के समय जग कर अपने नित्य कर्मों के अन्दर लगता है,वह संसार के साथ चल कर केवल पेट भरने का काम कर सकता है।

कुन्डली के अलग अलग भावों में शुक्र का प्रभाव

शुक्र के व्रत और पूजा-पाठ

Unless otherwise stated, the content of this page is licensed under Creative Commons Attribution-ShareAlike 3.0 License