नाडी ज्योतिष संक्षिप्त में

देश की यात्रा और दक्षिण भारत के प्रति भदौरिया जी की आस्था को समझना जरूरी होगा। एक कृषक परिवार मे जन्मे उत्तर भारत के श्री रामेन्द्र सिंह भदौरिया का ज्योतिष के प्रति कैसे ध्यान चला गया है यह किसी को भी पता नही है,कभी कभी वे स्वयं कहते है कि मुझे मेरे कामो से ही फ़ुर्सत नही थी,अचानक जाने कैसा ग्रह परिवर्तन आया कि स्वयं ही ज्योतिष की तरफ़ जाना हो गया। ग्रहों के बारे मे एक बार वे संत के पास बैठे थे,रास्ता ऋषिकेश से नीलकंठ महादेव जी को जाने वाला था,संतो से अधिक प्रेम होने और उनसे उनके जीवन की बाते जानने का मुख्य उद्देश्य भी यही था कि कैसे भी आध्यात्मिक ज्ञान का प्राप्त होना और कोई भी उनका उद्देश्य धन कमाने या अपनी प्रसिद्धि देने का नही था। उन संत ने संस्कृत भाषा मे एक पेंसिल से एक एक छोटे से कागज पर कुछ लिखा और उनसे कहा कि यह तुम्हारी जन्म पत्री है,इसे ध्यान से किसी विद्वान पंडित से दिखवाना। उन्होने उस संत से ही पूंछा कि वे ही कुछ बता दें तो उन्होने केवल इतना कहा कि आज के जमाने मे कहां क्या हो रहा है उन्हे पता नही है इसलिये वे कुछ बता नही सकते है,यह सब आज के जमाने का व्यक्ति ही अधिक बता सकता है,इतना कहकर वह संत वहां से आगे चले गये,भदौरिया जी के मन में बहुत कुछ जानने की उत्कंठा थी लेकिन वह अधूरी ही रह गयी।
उस पर्ची मे जो लिखा था वह इस प्रकार से था:-
"तुला लग्नोदयो जन्म ततस्थे चन्द्र नन्दन,
सिंहिका पुत्र समायुक्ते दिवानाथ समन्विते॥
व्यय़ गेहे गुरु बृहस्पति भूमिनन्दन संस्थित:,
रातिनाथ लाभ भावे सिंह राशि स्थितिता:॥
कुटुम्ब भावे रविपुत्र: विराजमान,
तस्य बल समायुक्ते भृगुपुत्र शक्तिवान भवत॥"
इस श्लोक के अर्थ से एक बात ही समझ मे आयी कि शनि देव की शक्ति से लगनेश का बल त्यागी भावना मे बदल गया,लेकिन इस त्याग का रूप कैसे प्राप्त हुआ यह बात नाडी ज्योतिष के विद्वान जो नन्दी नाडी मुम्बई के प्रख्यात है,श्री किशोरी रमण जी उन्होने बताया। तुला लगन मे चन्द्र के नन्दन अर्थात बुध स्थापित है,सिंहिका पुत्र अर्थात राहु देव भी बुध के साथ स्थापित है। दिवानाथ यानी सूर्य भी लगन मे ही स्थापित है। बारहवे भाव यानी कन्या राशि में गुरु और मंगल भी स्थापित है। लाभ भाव यानी ग्यारहवे भाव मे रतिनाथ यानी चन्द्रमा विराजमान है यानी सिंह राशि मे स्थापित है। कुतुम्ब के भाव मे रविपुत्र यानी शनि देव भी स्थापित है और उनके साथ भृगुपुत्र शुक्र भी विराजमान है।
इस प्रकार से नाडी की गति की समीक्षा मे उन्होने यह भी कहा है कि जिस प्रकार से शरीर की नाडी पिचहत्तर बार एक मिनट मे और दो मिनट में एक सौ पचास बार गति करती है उसी प्रकार से दो मिनट मे एक लगन का बनना पाया जाता है। वैसे लगन का समय सवा दो घंटे का है लेकिन नाडी की गति से लगन का समय केवल दो मिनट का है। एक सौ बीस सेकेण्ड में एक लगन यानी तीस डिग्री की क्षितिज मे बदल जाना। एक नाडी को पकडना किसी भी तरह से सम्भव नही है,विद्वान इस गति को पकडने के लिये कई प्रकार के साधन प्रयोग मे लाते है और एक व्यक्ति की नाडी को बताने के लिये उन्हे सालो मेहनत करनी पडती है। दक्षिण मे नाडी को पढने के लिये ताड पत्रो को प्रयोग मे लाया जाता है उसके लिये अंगूठे के निशान को लेकर उसके अन्दर चक्र मे जो चिन्ह होता है उससे केवल नवांस को पहिचाना जाता है। नवांश की गति के अनुसार ही नाडी की गति को समझकर नाडी वाचक अपने ज्ञान के अनुसार जीवन के बारे मे बताता है।

कैसे नवांश अपनी गति को प्रदान करता है

उपरोक्त श्लोक के अनुसार चन्द्रमा जो मन का कारक वह सिंह राशि का है मानसिक कारण सिंह का होना जरूरी है,चन्द्रमा से दूसरे भाव मे गुरु और मंगल के होने से वह जो भी बात करेगा वह तकनीकी होगी और समाज के धर्म के गूढ शब्दो से पूर्ण होगी,उसके मानसिक रूप से वह कभी भी अपने ही लोगो यानी परिवार के लोगों से कभी अपनी बातों को समबन्ध आदि के लिये पूर्ण नही कर पायेगा। तीसरे भाव मे सूर्य और राहु के साथ बुध के होने से जो भी नाम होगा वह पिता के नाम के दूसरे शब्द से शुरु होने वाला होगा। चन्द्रमा का पंचम धनु राशि है इसलिये जो भी नाम होगा वह किसी देवी देवता के नाम से होगा। चन्द्रमा से दसवे भाव में वृष राशि होने और उस राशि के पीछे केतु होने के कारण माता का नाम राशि से होगा और जो भी अक्षर व्रुष राशि का होगा उसके ऊपर छोटी इ की मात्रा होगी। आगे राहु होने से बडी मात्रा और पीछे केतु होने से छोटी मात्रा का होना पाया जाता है। पिता के नाम के लिये भी पीछे बुध होने से छोटी मात्रा और आगे राहु होने से बडी मात्रा का प्रयोग होता है। लगन से नवा भाव पिता का होता है। मिथुन राशि होने से पिता का नाम किसी ऐसे देवता से होना चाहिये जिसे एक साथ स्त्री पुरुष के रूप मे देखा जाये,जैसे शिव का अर्धनारीश्वर रूप मिथुन राशि के लिये प्रयोग मे लाया जाता है। पिता के नाम मे दो शब्द होने जरूरी है,एक शब्द में जो रूप मिलता है वह मिथुन राशि से जुडा होता है तो दूसरा शब्द भी मिथुन से पंचम यानी तुला राशि से जुडा होगा। यहां पर वैदिक जानकारी का होना जरूरी है,जैसे शिव के साथ राम का जुडा होना बहुत जरूरी है,अक्षर र तुला राशि का है और राहु के साथ होने से रा अक्षर मे बडे आ की मात्रा का होना अनिवार्य है,इस प्रकार से पिता का नाम शिवराम निकलता है। माता के नाम के लिये भी केतु के स्थापित होने वाले स्थान से दूसरे स्थान को देखा जाता है। वृष राशि मे अक्षर उ ब्रह्म का कारक है,तो व आकाश का कारक है और ब पाताल का कारक है। अष्टम भाव पाताल का है इसलिये माता के पहले अक्षर को ब से मानना चाहिये इसके बाद केतु के पीछे होने से छोटी इ की मात्रा लगाने से बि का मान बनता है.केतु से पंचम में चन्द्रमा के स्थान में जो अक्षर मिलता है वह ट और चन्द्रमा से तीसरे भाव मे राहु के साथ सूर्य और बुध के साथ होने से ओ की मात्रा और अक्षर ल को केतु के द्वारा प्रकट किया गया है। इस प्रकार से माता पिता का नाम नादी ज्योतिष से मिलता है। इस नवांश को ध्यान से देखने पर जीव का कारक गुरु मंगल के साथ है,मंगल के बाद की श्रेणी गुरु की है और गुरु से पहले भी चन्द्रमा की गिनती आती है चन्द्रमा से पहले सूर्य की गिनती है,गुरु के बाद शुक्र और शनि का नम्बर आता है उसके बाद ही राहु और केतु की श्रेणी को गिना जाता है। गुरु से अष्टम में केतु के होने से छोटे भाई बहिनो के बीच मे कम से कम आठ साल का अन्तर रहना चाहिये जो जीवित होते है। केतु से अष्टम में शुक्र और शनि के होने से जातक के चार से अधिक भाई बहिन पैदा होकर अपनी अपनी गति से समाप्त होने की बात भी मिलती है। सूर्य के साथ बुध और राहु के होने से पिता के पूर्वजो के साथ साथ पिता की ससुराल केतु की भी जमीन जायदाद होनी चाहिये केतु से अष्टम मे शुक्र शनि को भी देखा जा सकता है। जातक का बडा भाई मनमर्जी का अधिकारी होना चाहिये आदि बाते नाडी से निकाली जाती है।

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