मूल नक्षत्र और उनके प्रभाव

मूल संज्ञक नक्षत्र और उनका प्रभाव

ज्येष्ठा आश्लेषा और रेवती,मूल मघा और अश्विनी यह नक्षत्र मूल नक्षत्र कहलाये जाते है,इन नक्षत्रों के अन्दर पैदा होने वाला जातक किसी न किसी प्रकार से पीडित होता है,ज्येष्ठा के मामले में कहा जाता है,कि अगर इन नक्षत्र को शांत नही करवाया गया तो यह जातक को तुरत सात महिने के अन्दर से दुष्प्रभाव देना चालू कर देता है। अगर किसी प्रकार से जातक खुद बडा है,तो माता पिता को अलग कर देता है,और खुद छोटा है,तो अपने से बडे को दूर कर देता है,या अन्त कर देता है। यही बात अश्लेशा नक्षत्र के बारे मे कही जाती है कि अगर पहले पद मे जन्म हुया है तो माता को त्याग देता है,दूसरे पाये में पिता को त्याग देता है,तीसरे पाये में अपने बडे भाई या बहिन को और चौथे पाये मे अपने को ही सात दिन,सात महिने,सात साल के अन्दर सभी प्रभावों को दिखा देता है।

अभुक्त मूल विचार

ज्येष्ठा नक्षत्र की अन्त की दो घडी तथा मूल नक्षत्र की आदि की दो घडी अभुक्त मूल कहलाती है,लेकिन यह बातें तब मानी जाती थीं,जब जातक के माता पिता पहले से ही धर्म कार्यों के अन्दर खुद को लगा कर रखते थे,मगर आज के जमाने में सभी भौतिक कारणों से और सब कुछ पोंगा पंडित की किताब मानने के कारण दोनो नक्षत्रों की चारों ही घडी अभुक्त मूल कहलाने लगी हैं,इन दो नक्षत्रों में पैदा होने वाला जातक अपने मामा या पिता परिवार को बरबाद कर देता है,अथवा खुद ही बरबाद हो जाता है। कर्क लगन मे और कर्क राशि के अन्दर पैदा हुआ जातक अश्लेशा का जातक कहा जाता है,यह पिता के लिये भारी कहा जाता है,माता को परदेश वास देता है,तथा धन के लिये माता को सभी सुख देता है और पिता को मरण देता है।

मूल शांति के उपाय

ज्येष्ठा मूल या अश्विनी नक्षत्र में जन्म लेने वाले जातक के लिये नीचे लिखे मंत्रों का जाप २८००० जाप करवाने चाहिये,और २८वें दिन जब वही नक्षत्र आये तो मूल शान्ति का प्रयोजन करना चाहिये,जिस मन्त्र का जाप किया जावे उसका दशांश हवन करवाना चाहिये,और २८ ब्राह्मणों को भोजन करवाना चाहिये,बिना मूल शांति करवाये मूल नक्षत्रों का प्रभाव दूर नही होता है।

मंत्र

ऊँ मातवे पुत्र पृथ्वी पुरीत्यमग्नि पूवेतो नावं मासवातां विश्वे र्देवेर ऋतुभि: सं विद्वान प्रजापति विश्वकर्मा विमन्चतु॥

मूल नक्षत्र का बडा मंत्र यह है,इसके बाद छोटा मंत्र इस प्रकार से है:-

ऊँ एष ते निऋते। भागस्तं जुषुस्व।

ज्येष्ठा नक्षत्र का मंत्र इस प्रकार से है:-

ऊँ सं इषहस्त: सनिषांगिर्भिर्क्वशीस सृष्टा सयुयऽइन्द्रोगणेन। सं सृष्टजित्सोमया शुद्धर्युध धन्वाप्रतिहिताभिरस्ता।

आश्लेषा मंत्र

ऊँ नमोऽर्स्तु सर्पेभ्यो ये के च पृथ्वीमनु। ये अन्तरिक्षे ये दिवि तेभ्य: सर्पेभ्यो नम:॥

मूल शांति की सामग्री

घडा एक,करवा एक,सरवा एक,पांच प्रकार के रंग,नारियल एक,५०सुपारी,दूब,कुशा,बतासे,इन्द्र जौ,भोजपत्र,धूप,कपूर आटा चावल २ गमछे, दो गज लाल कपडा चंदोवे के लिये, मेवा ५० ग्राम, पेडा ५० ग्राम, बूरा ५० ग्राम,केला चार,माला दो,२७ खेडों की लकडी, २७ वृक्षों के अलग अलग पत्ते,२७ कुंओ का पानी,गंगाजल यमुना जल,हरनन्द का जल,समुद्र का जल अथवा समुद्र फ़ेन,आम के पत्ते,पांच रत्न,पंच गव्य वन्दनवार,हल,२ बांस की टोकरी,१०१ छेद वाला कच्चा घडा,१ घंटी २ टोकरी छायादान के लिये,१ मूल की मूर्ति स्वनिर्मित,बैल गाय २७ सेर सतनजा,७ प्रकार की मिट्टी, हाथी के नीचे की घोडे के नीचे की गाय के नीचे की तालाब की सांप की बांबी की नदी की और राजद्वार की वेदी के लिये पीली मिट्टी।

हवन सामग्री

चावल एक भाग,घी दो भाग बूरा दो भाग, जौ तीन भाग, तिल चार भाग,इसके अतिरिक्त मेवा अष्टगंध इन्द्र जौ,भोजपत्र मधु कपूर आदि। एक लाख मंत्र के एक सेर हवन सामग्री की जरूरत होती है,यदि कम मात्रा में जपना हो तो कम मात्रा में प्रयोग करना चाहिये।

मूल शान्ति नही करवाने पर मिलने वाले प्रभाव

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यह तस्वीर हमारे छोटे भाई के स्वसुर की है,इनके दो पुत्र और दो पुत्रियां है। बडी पुत्री की शादी मेरे छोटे भाई के साथ सन 1987 मे हुयी थी। छोटे भाई का बडा पुत्र सन 1989 में पैदा हुआ था। वह अपनी ननिहाल में पैदा हुआ था और अश्विनी नक्षत्र के दूसरे पाये में हुआ था। अधिकतर बोलने वाली भाषा में इस पाये के मूलों को मामा-मूल की उपाधि दे दी जाती है। यह मूल अगर नही उतरवाये जायें तो मालिक अश्विनी कुमार होने के कारण पूरे मामा खानदान के साथ अपने खान्दान को भी तबाही के रास्ते पर ले जाते है। जिन लोगों को फ़ल मिलते है उन सम्बन्धियों में सबसे पहले माँ पर फ़िर मां से सम्बन्धित जितने भी रिस्तेदार है उन सभी पर असर मिलता है जैसे मां के छोटे भाई बहिन,मां के पिता माता नानी नाना ताऊ पिता दादा ताऊ के लडके लडकियां आदि सभी इन मूलों की चपेट में अपने समय पर आते रहते है। अश्विनी कुमार का नाम चिकित्सा जगत में लिया जाता है,इस नक्षत्र के मूल शांति नही करवाने पर सुमीत के पैदा होने के बाद पहला असर उसकी माताजी के दादा पर पडा,यह असर सात दिन के बाद पडना शुरु हो जाता है,दादा दवाई का बहुत सारा खर्चा करवा कर चल बसे,उसके बाद असर माताजी के ताऊ पर पडा,वे भी काफ़ी दवाई खाने के बाद चल बसे,उसके बाद असर ताऊ के छोटे लडके की बहू पर पडा वह अपंग हो गयी। ताऊ का लडका घर छोड कर बाहर शहर में जा बसा,लेकिन उसके साथ भी व्यवसाय में काफ़ी मेहनत करने के बाद घाटे पर घाटा जाता रहा,उसके बाद असर जातक की माता पर शुरु हुआ,अपनी उम्र की सातवीं साल में माताजी को डाक्टर ने ह्रदय के दोनो वाल्व खराब बता दिये,आपरेशन हुआ पिता के साथ जातक के ताऊ भी कंगाल हो गये। इसके बाद पूरा असर जातक के परिवार में और ननिहाल के परिवार में समान रूप से शुरु हो गया। जातक के दादा दादी सवा महिने के अन्दर ही चल बसे,उसके बाद जातक की नानी बिना किसी बीमारी की पहिचान के चल बसी। इसके पहले जातक के मामा अच्छी तरह से होशियारी से पढाई कर रहा था,वह घर से भाग कर मुंबई गया और किसी मामले में जेल में बन्द हो गया,उसकी रिहाई आदि में तमाम पैसा खर्च हुआ। जातक के दादा का मकान तहस नहस हो गया,माता के आपरेशन के बाद ताऊ जिसने आपरेशन आदि में भाग लिया था उनके बडे लडके की शादी हुयी थी वह टूट गयी उनका चलता हुआ सभी काम अक्स्मात खत्म हो गया। पिता की पूरी की पूरी सैलरी माता की दवाई में लगने लगी। मामा को फ़िर गांव में जाकर केश लग गया,सजा हुई और फ़िर से काफ़ी पैसा खर्च हुआ,जातक के बडे मामा के इलाज को विशाखापट्टनम तक करवाया गया वह भी काफ़ी धन बरबाद हुआ लेकिन जातक के बडे मामा की अपंगता खत्म नही हुयी। फ़िर नम्बर आया जातक की मौसी का उसका विवाह हो गया था,जातक के छोटे मामा ने उसका पूरा का पूरा जेवर बरबाद कर दिया,फ़िर उसकी मौसी का आपरेशन हुआ और उसकी पित्त की थैली ही निकाल दी गयी,जातक के मौसा का जो भी व्यवसाय था वह अचानक बैठ गया,जातक के बडे ताऊ भी लपेटे में आये उनके बडे लडके की शादी अच्छी भली हुयी थी,उस शादी में भी दरार आ गयी,जातक के ताऊ की बडी से छोटी लडकी भी अचानक खत्म हो गयी। जातक के ताऊ के ही पुत्र पैदा हुआ और वह भी अचानक खत्म हो गया,जातक के ताऊ की लडकी की शादी हुयी वह भी अचानक टूट गयी,उसकी मौसी का फ़िर से जेवर जो बनवाया था वह बस के अन्दर चोरों ने निकाल लिया। यहां तक कि जो राजकाज जातक के परिवार में चल रहे थे,सभी बरबादी की कगार पर जा खडे हुये,सबसे अधिक जातक के ननिहाल परिवार पर असर गया। मामा की शादी के बाद मामा घर छोड कर चला गया,जातक का नाना दर दर का भटकने के लिये सभी घर वालों ने छोड दिया।

कैसे ख्याल आया जातक के मूल नक्षत्र को देखने का

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कुछ समय पहले हम पूरे परिवार के साथ रामेश्वरम की यात्रा पर गये थे। वहां से वापस आकर जातक की माता की फ़िर तबियत खराब हो गयी। उसे सांस लेने में तकलीफ़ होने लगी और वह डाक्टरों की शरण में फ़िर जाने लगी। अचानक मेरे द्वारा ज्योतिष का काम करने के कारण एक दिन भतीजे की जन्म तारीख के बारे में भाई से पूंछा तो उसने जो तारीख बताई उसके अनुसार भतीजा इक्कीसवी साल में जा रहा था,उसकी माता का आपरेशन का समय देखा तो उसकी उम्र की आठवीं साल में हुआ पाया,उसके बाद जब दुबारा से उसकी तबियत खराब हुई और नानी की मृत्यु हुयी तो उम्र की पन्द्रहवी साल में यह होना पाया उस समय भी जातक की माता के प्रति काफ़ी खर्चा हुआ था,उसके बाद जातक जब इक्कीसवीं साल में प्रवेश किया तो फ़िर से उसकी माताजी की तबियत खराब होने का कारण मिलने लगा,वही परेशानी बार बार आने लगी। कुंडली के द्वारा देखा तो जातक का जन्म अश्विनी के मूलो में हुआ था,उसकी माता से पूंछा कि उसके पैदा होने के बाद उसकी मूल शांति करवायी गयी थी,तो उसकी माता ने मना कर दिया कि उसके मायके वालों ने मना कर दिया था,कि मूल शांति नही करवानी है यह तो केवल पंडितों की चाल होती है। मैने अपने ज्योतिष काल में बहुत सारे लोगों के लिये इन मूल नक्षत्रों की शांति के लिये कोई उपाय नही करने पर उनकी बीती जिन्दगी के बारे में समझा था और बाद में उनकी मूल शांति के उपाय देने पर उन्हे आशातीत सुधार भी मिला था,इसलिये मैने अपने भतीजे की मूल शांति का प्रोग्राम बनाया,उसका बडा मामा जो अपंग है मेरे ही पास था,उसके द्वारा मैने भतीजे के लिये लिये मूल शांति के नाम से संकल्प करवाया और पिछली 29 अगस्त को पडने वाले अश्विनी नक्षत्र को मूल शांति का प्रोग्राम बना दिया। प्रोग्राम बनाने के बाद एक बहुत ही होशियार पंडित राकेश उपाध्याय से मूल शांति के बारे में बात की और सामान आदि लाने के लिये उन्हे पेशगी में रुपया भी दे दिया।

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जिस दिन पेशगी में मूल शांति का पैसा दिया है उसी दिन शाम को तीन बजे के आसपास भतीजे के मामा को अचानक दौरा पडा,उसे पहले भी कभी कभी दौरे पडे थे,लेकिन जो यह दौरा पडा था वह काफ़ी विकट था,जब तक डाक्टर के पास ले जाते वह सामान्य स्थिति में आगया,लेकिन रात को वह जिस बिस्तर पर सोया था,उस बिस्तर पर उसने मल त्याग किया और अपने पूरे शरीर में लपेट लिया। सुबह उसकी हालत देखी तो जिस स्थान पर वह सो रहा था उस स्थान से पचास मीटर की दूरी तक खडा नही हुआ जा रहा था। उसकी साफ़ सफ़ाई करवायी और उसे सामान्य स्थिति में लाने के लिये डाक्टर को बुलाया,डाक्टर ने केवल यही जबाब दिया कि उसे कोई बीमारी नही है,और दौरा वैसे तो बार बार पडने नही चाहिये,लेकिन जो पड रहे है,वे असमान्य है। एक नही तीन डाक्टरों से राय ली दवाई दिलवाई लेकिन दौरा में कोई असर नही हुआ। शाम को वह फ़िर से वही हरकत में आया तो उसे कपडे आदि पहिनाकर साफ़ सफ़ाई करवाकर उसके गांव भिजवा दिया। जिस दिन मूल शांति होनी थी उस दिन सुबह को ही पंडित राकेश उपाध्याय का फ़ोन आया कि भाई साहब मैं तो हास्पिटल में हूँ मुझे डाक्टर ने पीलिया बता दिया है और मेरी हालत बहुत खराब है। उसने दूसरे पंडित को फ़ोन बतला दिया और दूसरा पंडित सामान आदि लेकर आया और मूल शांति का प्रायोजन शुरु किया। शाम को लगभग चार बजे मूल शांति का प्रायोजन समाप्त हुआ।

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जैसे ही मूल शांति हुयी,वैसे ही भतीजे की माता अचानक बिलकुल ठीक हो गयी,वह जो लगातार बिस्तर पर पडी थी,वह सब काम भाग भाग कर करने लगी। उसके बडे मामा को फ़ोन किया तो पता लगा कि वह भी ठीक है और फ़िर कोई दौरा आदि नही पडा है,मूल शांति में भतीजे के नाना मौसी माता पिता सभी को बुला लिया था,सभी कार्य सही तरीके से सम्पन्न हुये,सभी सामान के साथ हवन करवाया,सत्ताइस ब्राह्मणों को भोजन करवाया जैसी भी दक्षिणा देनी थी दी,और उन्हे विदा किया,एक बात और सामने आयी कि उस दिन जिन ब्राह्मणों के लिये कभी कल्पना भी नही की थी वे ब्राह्मण हमारे घर उस मूल शांति के प्रायोजन में शामिल हुये,जैसे मुम्बई से लक्ष्मीनारायण जोशी जिनका जयपुर आने का अचानक दौरा बना था,उसके बाद पांच ब्राह्मण एक साथ शाहपुरा से आगये और उन सत्ताइस के अलावा भी प्रसाद लेकर गये।

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