लालकिताब के भाव

लालकिताब से भाव कथन

हर भाव जिन जिन बातों का कारक है वो प्राचीन ज्योतिष पद्धति से कुछ बातों में भिन्न है,भिन्न इस अर्थ में है कि लाल किताब के अनुसार हर भाव से वृक्षों का संबन्ध मकान का संबन्ध जिस्म यानी शारीरिक ताकत का संबन्ध हमारे अंदर के स्वभाव का संबन्ध पक्षियों का सम्बन्ध देवताओं का सम्बन्ध इस तरह की अनगिनत चीजें हर भाव से सम्बन्धित दी गयी हैं। और उनकी व्याख्या है। लेकिन यह बात अवश्य है कि लालकिताब पद्धति के अनुसार भाव का महत्व पुराने ज्योतिष के मुकाबले में कुछ बातों में थोडा कम है। क्योंकि भाव का जिक्र करते हुये भी जब फ़लादेश के हिस्से को हम पढते है तो वहां पर ग्रह का महत्व भाव के मुकाबले में कुछ हद तक ज्यादा बढ जाता है। जैसे पांचवां घर औलाद का घर तो है लेकिन औलाद के बारे में फ़लादेश देखने के लिये ग्रहों का प्रभाव ज्यादा है। जैसे बेटे के बारे में जानने के लिये केतु की स्थिति पर ध्यान देना पडेगा,बुआ या बहिन के बारे में जानने के लिये यानी फ़लकथन के लिये बुध की स्थिति पर ध्यान देना पडेगा। इस तरह हर भाव के अर्थ ग्रह की स्थिति के मुकाबले में कुछ सीमा तक कम पड जाते हैं। इसलिये केवल भाव को अलग लेकर या उसके स्वामी यानी राशि के स्वामी या पक्के घर के कारक ग्रह को देखकर ही लाल किताब पद्धति का फ़लकथन ठीक से नहीं किया जाता,क्योंकि भाव के अलावा हर ग्रह जिस चीज का कारक है,उस पर यदि पूरा ध्यान न दें,तो फ़लादेश समझ में नही आयेगा। मेरा कहने का यह मतलब नहीं कि भाव का महत्व या भाव से संबधित चीजों का महत्व कम है,लेकिन ग्रह के महत्व को भाव के मुकाबले में ज्यादा महत्व दिया गया है। जो ग्रह राशिफ़ल के होते है,उनका उपाय हो सकता है। परन्तु जो ग्रह ग्रहफ़ल के होते है उनका कोई उपाय नहीं किया जा सकता।
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पहला भाव
दूसरा भाव
तीसरा भाव
चौथा भाव

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