ग्रहों की प्रकृति
3227655.jpg

भारतीय वैदिक ज्योतिष के द्वारा नौ ग्रहों का प्रतिपादन किया गया था,और कालान्तर से इन्ही ग्रहों का बोलबाला चला आ रहा है,भारतीय ज्योतिष में प्लूटो और यूरेनस तथा नेपच्यून की मान्यता नही दी गयी,लेकिन आजकल के ज्योतिष-विद इनको भी साथ लेकर चल रहे है,लालकिताब में कुल नौ ग्रह जिनमे सूर्य,मंगल और गुरु पुरुष ग्रह के रूप में,चन्द्र और शुक्र स्त्री ग्रह के रूप में,शनि और बुध न स्त्री और न पुरुष के रूप में राहु और केतु का रूप छाया ग्रह होने के साथ ब्रह्माण्ड के कण कण में उपस्थिति मानी गयी है.ग्रहों का लालकिताब में भावानुसार ही महत्व दिया गया है,राशियों की कोई महत्ता नही है,और जिस प्रकार से उच्च और नीच का ग्रह बताया जाता है,उसी प्रकार से लालकिताब में भी उच्च और नीच का मान रखा जाता है,जैसे पहले भाव में सूर्य उच्च का होता है,शनि नीच का होता है,दूसरे भाव में चन्द्र उच्च का होता है,और किसी ग्रह का उच्च नीच का भेद नही होता है,तीसरे भाव में केतु राहु उच्च का होता है,केतु नीच का माना जाता है,चौथे भाव में गुरु उच्च का होता है,मंगल नीच का माना जाता है,पांचवें भाव में सभी ग्रहों का प्रभाव बराबर का रहता है,न कोई ऊंच का होता है,और न ही कोई नीच का माना जाता है,छठे भाव में बुध को उच्च का माना जाता है,और शुक्र केतु नीच के माने जाते है,सातवें भाव में शनि राहु उच्च के होते है,और सूर्य नीच का माना जाता है,आठवें भाव में मंगल उच्च का होता है,और चन्द्र नीच का माना जाता है,नवें भाव में केतु उच्च का होता है और राहु को नीच का माना जाता है,दसवें भाव में मंगल उच्च का होता है,और गुरु नीच का माना जाता है,ग्यारहवें भाव में भी कोई उच्च और नीच का नही होता है,बारहवें भाव में शुक्र केतु उच्च के माने जाते है,और बुध राहु नीच के माने जाते है,इसके अलावा लालकिताब में ग्रहों के परमानेन्ट यानी पक्के घरों का भी बखान मिलता है,जैसे सूर्य का पक्का घर पहला होता है,चन्द्र का चौथा,मंगल का तीसरा और आठवां बुध का सातवा,गुरु के चार पक्के घर होते है,जिनमे दूसरा,पांचवां,नौवां और बारहवां,शुक्र का सातवां शनि के भी दो घर पक्के है,आठवां और दसवां,राहु का पक्का घर बारहवां है,केतु का छठा घर पक्का माना जाता है.

ग्रहों के बराबर के ग्रह

लालकिताब में सभी ग्रह फ़ल देने के मामले में एक दूसरे के बराबर के माने जाते है,जो ग्रह एक दूसरे की बराबरी कर सकता है,उसमे सूर्य की बराबरी बुध कर सकता है,चन्द्र की बराबरी शुक्र,शनि,गुरु,मंगल कर सकते है,मंगल की बराबरी शुक्र शनि राहु कर सकते है,बुध की बराबरी शनि केतु और मंग्ल गुरु कर सकते है,गुरु की बराबरी राहु केतु और शनि कर सकते है,शुक्र की बराबरी करने के लिये मंगल और गुरु को ही शक्ति प्राप्त है,शनि की बराबरी करने के लिये केतु और गुरु है,राहु की बराबरी करने के लिये गुरु और चन्द्र है,और केतु के बराबर चलने के लिये गुरु,शनि,सूर्य और बुध का बखान किया गया है,इसके बाद भी कुन्डली में देखना पडता है,कि जब सूर्य और बुध एक ही घर में होते है,तो बुध सूर्य के तेज के कारण बल हीन हो जाता है,मंगल और राहु के एक ही भाव में होने के कारण राहु का बल खत्म सा ही माना जाता है,कारण मंगल अंकुश है,और राहु हाथी है,उसे मंगल के अनुसार ही चलना पडता है,राहु और चन्द्रमा एक साथ होते है,तो चन्द्रमा का बल घट जाता है,केतु के साथ होने पर सूर्य का बल घट जाता है.

लालकिताब के नकली ग्रह

लालकिताब में दो या दो से अधिक ग्रहों के एक साथ मिलने पर एक नया ग्रह बनने आ विवरण दिया गया है,जो ग्रह तीसरे ग्रह के बराबर का फ़ल देता है,अक्सर वैदिक ज्योतिष का काम हर ग्रह का बखान करके पल्ला झाड लेना होता है,मगर लालकिताब के द्वारा नकली ग्रह को पकड कर उसका फ़ल कथन करना काफ़ी सहायक सिद्ध होता है,जैसे सूर्य और बुध मिलकर नकली मंगल नेक का रूप ले लेता है,सूर्य का रूप ज्वाला से है और बुध को पृथ्वी का रूप मानने पर लगातार एक ही भाव में रह कर बुध सूर्य की ज्वाला से मंगल की तरह से गर्म हो जाता है,इस तरह से हर ग्रह की सिफ़्त के अनुसार बखान किया जाता है,बुध और शुक्र मिलकर नकली सूर्य का रूप धारण कर लेते है,सूर्य और गुरु मिलकर चन्द्रमा रूप बन जाता है,सूर्य और शनि मिलकर मंगल बद बन जाता है,गुरु और राहु मिलकर बुध का रूप धारण कर लेते है,सूर्य और शुक्र मिलकर गुरु का रूप बन जाता है,गुरु और शुक्र मिलकर शनि केवल केतु के समान बन जाता है,मंगल और बुध मिलकर भी शनि का रूप ले लेते है,लेकिन सिफ़्त केतु के समान ही मानी जाती है,मंगल और शनि दोनो मिलकर राहु उच्च का माना जाता है,शुक्र और शनि मिलकर केतु उच्च का माना जाता है,चन्द्र और शनि मिलकर केतु नीच का माना जाता है,जब भी किसी ग्रह का उपचार किया जाता है,तो किसी भाव में मिलने वाले दुष्प्रभाव का पता इन नकली ग्रहों को देखने के बाद शत प्रतिशत सही निकलता है.

लालकिताब में पाप और पापी ग्रहों की व्याख्या

लालकिताब में ग्रहों के बारे में साफ़ तरीके से स्पष्ट किया गया है,कि पाप और पापी का अन्तर क्या होता है,जो पाप ग्रह तो हमेशा के लिये ही पाप करने वाला होता है,लेकिन कुछ ग्रह अपने को पाप ग्रह के साथ रखकर या किसी पाप भाव में आकर पाप करने वाले यानी पापी बन जाते है,राहु और केतु हमेशा के लिये पाप ग्रह कहे गये है,जबकि शनि-राहु-केतु सामूहिक रूप से पापी होते है.

लालकिताब में परमानेन्ट फ़ल देने वाले को कायम ग्रह कहा गया है.

जब ग्रह अपने अन्दर इतनी शक्ति लेकर विद्यमान होता है,कि वह जो भी अच्छा या बुरा परिणाम देता है,अपने द्वारा देता है,और किसी प्रकार से अन्य ग्रहों की सिफ़्त को अपने द्वारा हजम नही करता है,और न ही उसपर किसी अन्य ग्रह का असर पडता है,वही कायम ग्रह कहलाता है,यह तभी सम्भव होता है,कि जिस ग्रह के बारे में जानना होता है,उस ग्रह के साथ कोई ग्रह नही हो,उस ग्रह से कोई ग्रह युति नही कर रहा हो,उस ग्रह से उच्च या नीच का भेद नही हो,वह ग्रह किसी ग्रह की आज्ञा का पालन नही कर रहा हो.शनि मंगल और गुरु का अन्य भावों मे स्थिति ग्रहों पर असर तो जा सकता है,लेकिन सामने वाला ग्रह इन ग्रहों पर कोई असर नही दे पाता है,शनि गुरु की पूरी नजर अपने से तीसरे भाव में स्थिति ग्रह पर तो पडती है,लेकिन तीसरे भाव में स्थिति ग्रह शनि गुरु पर असर नही दे पाता है,इस प्रकार से शनि और गुरु अपने से तीसरे भाव में विराजमान ग्रहो पर अपना आधिपत्य अच्छा या बुरा तो डाल सकते है,लेकिन तीसरे भाव वाला ग्रह केवल आज्ञा को मान सकता है,अपनी आज्ञा को दे नही सकता है.वह अपने सामने सातवें भाव को इनका असर जरूर प्रसारित कर सकता है,अगर इन तीनो के अलावा है तो.शनि राहु केतु का समान असर होता है,लेकिन शनि अपने स्थान से दसवें भाव को भी कब्जे में रखता है,इसलिये राहु केतु शनि के शिष्य ही कहे जायेंगे.

लालकिताब के अनुसार धर्मी ग्रहों का विवेचन

चन्द्रमा के साथ राहु केतु शनि आदि सभी ग्रह किसी भी भाव में धर्मी बन जाते है,राहु और केतु चौथे भाव में जाकर धर्मी बन जाते है,शनि ग्यारहवें भाव में और गुरु के साथ मिलकर धर्मी बन जाता है,धर्मी ग्रह किसी भी प्रकार से भाव या किसी ग्रहो को परेशान नही करते,उनको अच्छे या बुरे से कोई लेना देना नही होता है,कोई भी ग्रह क्या कर रहा है,धर्मी ग्रह को कोई सरोकार नही होता है,वे अपने में ही मस्त रहते है,ग्यारहवें भाव में शनि के होने पर पुत्र को पिता वाले कामों के प्रति कोई लेना देना नही होता है,साथ ही ग्यारहवें भाव का शनि किये जाने वाले काम का मूल्य मांगना नही जानता है,शनि कर्म का दाता है,और ग्यारहवां भाव बडे भाई और दोस्तों के साथ पिता के कुटुम्ब से भी वास्ता रखता है,अगर जातक बडे भाई के प्रति या दोस्तों के प्रति या अपने पिता के कुटुम्ब के प्रति काम करता है,तो वह उनसे मूल्य नही मांग पाता है,अगर किसी प्रकार से किये गये काम का मूल्य लेने के लिये उनके पास जाता है,और वे किसी प्रकार से दुखी दिखाई देते है,तो वह बजाय वसूली के उनको कुछ देकर और आता है,इसी प्रकार से शनि और गुरु के साथ रहने पर देखा जाता है,चालाक लोग इस प्रकार के इन्सान को आराम से लूट लेते है,और वह किसी प्रकार कुछ कह भी नही पाता है,उसके परिवार या पत्नी पर कोई कुछ भी असर देता रहे,उसे कोई लेना देना नही होता है.अधिकतर ऐसा जातक गुरू धर्म और शनि कर्म के बीच में फ़ंस कर रह जाता है.

लालकिताब के अनुसार मुकाबला करने वाले ग्रह

अगर कोई दो मित्र ग्रहों में से एक दूसरे के पक्के घर में पहुंच जाता है,और और एक नही पहुंच पाता है,तो दोनो के अन्दर प्रतिस्पर्धा छिड जाती है,और दोनो ही मुकाबला करने वाले ग्रह बन जाते है,फ़िर उनका स्वभाव मित्रों जैसा नही रहता है,और जो ग्रह अपने मित्र के पक्के घर में चला जाता है,उसका आचरण मित्र जैसा न होकर शक के दायरे में आजाता है,जैसे अष्टम भाव का केतु पत्नी की कुन्डली में दूसरे भाव का बखान करेगा,और पत्नी के लिये मुंह बोले भाई का नाम देगा,लेकिन अगर पत्नी की छोटी बहिन की पुत्री जो कि जातक की कुन्डली के तीसरे भाव की कर्ता धरता है,(जातक का सातवां भाव उसकी पत्नी का है,पत्नी की छोटी बहिन जातक के नवें भाव से वास्ता रखती है,और उस छोटी बहिन की पुत्री उससे सातवें यानी जातक के तीसरे भाव से वास्ता रखेगी ) तीसरे भाव से जातक का आठवां भाव छठा पडता है,और इस भाव के जागृत होते ही जातक की उस पत्नी के मुंह बोले भाई की अनबन चालू हो जायेगी,जबकि उसका लगाव पहले जातक के धन या धर्म या कुटुम्ब से रहा होगा,और किसी प्रकार की परेशानी के लिये वह जातक को कर्जा दुश्मनी और बीमारी में ही जिम्मेदार माना जायेगा,इस प्रकार से जातक और उस केतु के काम जातक और उस केतु के प्रति संदेहास्पद हो जायेंगे,वे एक दूसरे के प्रति कब और क्या कर सकते है,किसी को पता नही चल पायेगा.इसी तरह से एक अन्य बखान में सूर्य और मंगल एक दूसरे के मित्र है,और मंगल तो सूर्य के पक्के घर यानी पहले भाव में पहुंच जाता है,लेकिन सूर्य न तो तीसरे और न ही आठवें घर में पहुंच पाता है,तो मंगल की आदत का अन्दाज लगाना मुश्किल होगा,वह किसी प्रकार से जातक के मंगल या सूर्य के फ़ल को बिगाड सकते है.

लालकिताब में साथी ग्रहों का प्रभाव

जब दो मित्र ग्रह किसी भाव में एक साथ या आगे पीछे के घरों में पहुंच जाते है,तो वे साथी बन जाते है,और एक दूसरे की सहायता करने लगते है,इसके अलावा शत्रु ग्रह किसी प्रकार से भी सहायता नही करते है,चाहे वे एक दूसरे के साथ बिलकुल ही सट कर क्यों न बैठें,इस बात का लालकिताब कार ने बडी ही मार्मिक द्रिष्टि से विवेचन किया है,और ग्रहों को प्राकृतिक-न्याय सिद्धान्त के अन्तर्गत रख कर ही प्रत्येक ग्रह की व्याख्या की है.उसने समझा है,कि शत्रु शत्रु ही रहेगा,और मित्र मित्र रहेगा,शत्रु से कभी भी सहायता की उम्मीद नही की जा सकती है,किन्ही कारणों से और समय तथा गोचर से शत्रु ग्रह अगर मित्र का वर्ताव करने लगता है,तो वह जैसे ही अपने क्षेत्र में पहुंचेगा,वह अपनी भडास निकालने से नही चूकेगा.

लालकिताब के द्वारा ग्रहों की सीमा

वैदिक ज्योतिष की मान्यता के अनुसार प्रत्येक ग्रह अपने स्थान से सातवें स्थान के ग्रह को पूर्ण द्रिष्टि से देखता है,शनि गुरु राहु केतु अपने स्थान से तीसरे और सातवें स्थान को पूर्ण द्रिष्टि से देखते है,गुरु और राहु केतु अपने स्थान से पांचवें और नवें स्थान को भी देखते है,शनि अपने स्थान से दसवें स्थान को भी देखता है,मंगल अपने स्थान से चौथे,सातवें और आठवें स्थान को देखता है,और बाकी के ग्रह सातवें स्थान को ही देखते है.लेकिन लालकिताब का नियम ही सबसे अलग है,उसके द्वारा प्रत्येक ग्रह अपने से आगे के भावों को ही देख पाता है,पीछे के भावों से उसका कोई सरोकार नही होता है,लेकिन आठवां भाव इसका अपवाद माना जाता है,वहां पर विराजमान ग्रह अपने से आगे और पीछे दोनो तरफ़ देख सकता है,लालकिताब के द्वारा जो ग्रहों की द्रिष्टि होती है,वह इस प्रकार से होती है - पहले भाव में विराजमान ग्रह सातवें भाव को देखता है,दूसरे मे बैठा ग्रह छठे भाव को देखता है,तीसरे में बैठा ग्रह नौ और ग्यारह को ही देखता है,चौथे भाव में विराजमान ग्रह दसवें भाव को देखता है,पांचवें भाव में विराजमान ग्रह नौ और ग्यारह को देखता है,छठे भाव में विराजमान ग्रह बारहवें भाव को देखता है,आठवें भाव में विराजमान ग्रह दूसरे भाव को देखता है.अगर कोई ग्रह छठे भाव में विराजमान है,तो वह बारहवें भाव को ही देखेगा,उसे पांचवें और चौथे तीसरे दूसरे और पहले भाव से कोई लेना देना नही रहता है,इस व्यवस्था के द्वारा सातवां,नौवां,दसवां,ग्यारहवां,और बारहवां भाव कोई द्रिष्टि नही रखते है,और जो ग्रह किसी भाव में विराजमान है,और उसके द्वारा देखे जाने वाले भाव के अन्दर कोई ग्रह नही हो तो वह ग्रह भी अन्धा हो जाता है,और बेकार ही माना जाता है.

लालकिताब के अनुसार सोये हुये भाव और ग्रह को जगाने के उपाय

जो भाव या ग्रह सोये हुये होते है,उनको पूजा और उपचार के बाद लालकिताब के अनुसार जगाया जा सकता है,ग्रह जो सोया हुआ हो,उसके लिये ग्रह की द्रिष्टि को देखकर जगाया जाता है,कौन से भाव को किस ग्रह के द्वारा जगाया जाता इसके लिये जानने से पहले यह जानना जरूरी होता है,कि उसे देखे जाने वाले भाव के अन्दर कौन सा ग्रह है,सभी भावों को एक साथ जगाने पर अनर्थ भी हो सकता है,इस लिये हमेशा भाव को सही रूप से समझ कर ही जगाना चाहिये,ग्रह का नाम और भाव का प्रभाव आगे बताया जायेगा,अभी तो आपके लिये भाव और उसके मालिक ग्रह के बारे में बताया जा रहा है,पहले भाव के लिये मंगल,दूसरे भाव के लिये चन्द्रमा,तीसरे भाव के लिये बुध,चौथे भाव के लिये चन्द्रमा,पांचवे भाव के लिये सूर्य, छठे भाव के लिये राहु,सातवें भाव के लिये शुक्र,आठवें भाव के लिये चन्द्रमा,नवें भाव के लिये गुरु,दसवें भाव के लिये शनि,ग्यारहवें भाव के लिये गुरु और बारहवें भाव के लिये केतु की पूजा पाठ और उपचार आदि करने चाहिये.

लालकिताब के द्वारा देखी जाने वाली योगद्रिष्टि

Unless otherwise stated, the content of this page is licensed under Creative Commons Attribution-ShareAlike 3.0 License