लालकिताब से कुन्डली विवेचन
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लालकिताब से दो प्रकार की जन्म कुन्डलियां बनाई जाती है,एक हाथ की रेखाओं के द्वारा,और दूसरी ज्योतिष शास्त्र के द्वारा बनी हुई जन्म कुन्डली का संशोधन करके,इन दोनो प्रकार से कुन्डली को बनाकर जब फ़लकथन निकाला जाता है,तो सफ़ल कथन कहलाता है,इसके पहले हाथ और जन्म तारीख से कुन्डली बनाने के प्रति कुछ जानकारियां भी चाहिये होती है,जैसे कि वर्तमान की परेशानियां पिछले जीवन में अच्छी और खराब दोनो प्रकार की घटी हुई घटनाये,जो तारीख और समय के साथ याद हों,आदि की जानकारी के बाद फ़लकथन किया जाता है,और जो भी उपाय होते है,उनको दिया जाता है,उपाय सभी जातक के द्वारा करने होते है.

हाथ की रेखाओं के द्वारा जन्म कुन्डली बनाना

जब इन्सान जन्म लेता है,तो वह अपने जीवन का नक्सा लेकर पैदा होता है,और जो भी उसका भाग्य होता है,वह बन्द मुट्ठी के अन्दर होता है,जब जमीन पर इन्सान का आना होता है,तो वह अपनी मुट्ठियों को एक दम नही खोलता है,जमाने की हवा लगने के बाद और समय के परिवर्तन के बाद ही हाथ खुलते है,जब हाथ पूरी तरह से विकसित हो जाता है,तो विकसित हाथ के आधार को लेकर जन्म कुन्डली बनाई जाती है,लालकिताब के द्वारा ही यह सम्भव है,अन्य दुनिया की कोई भी प्रथा लालकिताब के अनुसार काम नही करती है,हाथ पर अंगूठे और उंगलियों की जडों में बने पर्वत,जैसे अंगूठे के नीचे बना शुक्र और मंगल का पर्वत,पहली उंगली के नीचे बना गुरु का पर्वत,बीच की उंगली के नीचे बना शनि पर्वत,अलामिका के नीचे जिसे अंग्रेजी में रिंग फ़िन्गर कहते है,के नीचे बना सूर्य पर्वत,सबसे छोटी उंगली के नीचे बना बुध पर्वत,और हाथ के अन्त में बना चन्द्र पर्वत और बद मंगल का पर्वत जीवन रेखा के समाप्ति स्थान पर बना राहु पर्वत,हाथ में ग्रहों की स्थिति बताते है,राशियों के लिये तर्जनी का प्रथम पोर मेष राशि का होता है,दूसरा वृष राशि का होता है,तीसरा मिथुन राशि का होता है,अनामिका का प्रथम पोर कर्क राशि का माना जाता है,दूसरा पोर सिंह राशि का माना जाता है,तीसरा पोर कन्या राशि का माना जाता है,बीच की उंगली का प्रथम पोर तुला राशि का माना जाता है,दूसरा पोर वृश्चिक राशि का माना जाता है,तीसरा पोर धनु राशि का माना जाता है,सबसे छोटी उंगली का प्रथम पोर मकर राशि का माना जाता है,दूसरा पोर कुम्भ राशि का माना जाता है,और तीसरा पोर मीन राशि का माना जाता है.जातक की हथेली पर बारह भाव अलग अलग प्रकार से होते है,पहला भाव सूर्य पर्वत के पास,दूसरा भाव गुरु पर्वत के पास,तीसरा भाव अंगूठे के और तर्जनी उन्गली की बीच वाली सन्धि में,चौथा भाव सबसे छोटी उन्गली के सामने हथेली के आखिर में,पांचवा भाव बुध और चन्द्र पर्वत के बीच में छठा भाव हथेली के बिलकुल बीच में,और सातवां भाव बुध पर्वत के नीचे,आठवां भाव चन्द्र पर्वत के नीचे,नवां भाव शुक्र और चन्द्र पर्वत की बीच में,दसवां भाव शनि पर्वत के नीचे,और ग्यारहवां भाव बद मंगल और हथेली के बीच में,बारहवा भाव शुक्र पर्वत और हथेली बीच में जीवन रेखा के नीचे लिखा होता है.हाथ के अन्दर बने अन्य निशानों में सूर्य का निसान सूर्य की तरह से होता है,चन्द्र का निशान चन्द्र और तारा की तरह से होता है,मंगल नेक का निशान चौकोर चतुर्भुज के आकार का होता है,बद मंगल का निशान त्रिकोण के रूप में होता है,बुध का निशान बिलकुल गोल आकृति का होता है,गुरु का निसान एक पताका की तरह से होता है,शुक्र का निशान समान्तर में बनी दो लहराती हुई रेखाऒ से देखा जाता है,शनि का निशान धन के आकार का होता है,राहु का निशान एक आडी तिरछी रेखाऒ के द्वारा बना हुआ जाल सा होता है,और केतु का निशान लम्बी रेखा के नीचे एक अर्धवृत के द्वारा पहिचाना जाता है.

ज्योतिषी पद्धति से बनी जन्म कुन्डली को लालकिताब के अनुसार बनाना

लालकिताब में राशियों को नही माना जाता है,केवल भावों को ही माना जाता है,ज्योतिष पद्धति से बनी कुन्डली को सामने रखकर उसकी राशियों को मिटा देते है,ग्रह जहां है,वही पर रखा रहने देते है,लगन में एक नम्बर लिख देते है,और फ़िर बायीं तरफ़ के लिये दो और तीन इस प्रकार से लिखते चले जाते है,अथवा इस प्रकार कहिये कि कुन्डली को मेष राशि की लगन वाली बना देते है,लेकिन ग्रहों को वही का वही रहने देते है,फ़िर कारकों को और स्वामी ग्रहों को अपने अनुसार बनाकर लिख लेते है,पहले भाव का स्वामी ग्रह मंगल होता है,और कारक ग्रह सूर्य होता है,दूसरे भाव का स्वामी ग्रह शुक्र होता है,और कारक ग्रह गुरु होता है,तीसरे भाव का स्वामी ग्रह बुध होता है,और कारक ग्रह मंगल होता है,चौथे भाव का स्वामी ग्रह चन्द्र होता है और कारक ग्रह भी चन्द्र ही होता है,पाचवें भाव का स्वामी ग्रह सूर्य होता है,और कारक ग्रह गुरु होता है,छठे भाव का स्वामी ग्रह बुध होता है,और कारक ग्रह केतु होता है,सातवें का स्वामी शुक्र होता है,और कारक ग्रह शुक्र और बुध दोनो होते है,आठवें भाव का स्वामी ग्रह मंगल होता है,और कारक ग्रह शनि मंगल और चन्द्र होते है,दसवें भाव का स्वामी ग्रह भी शनि होता है,और कारक भी शनि होता हओ,ग्यारहवें भाव का स्वामी शनि होता है,लेकिन कारक गुरु होता है,बारहवें भाव का स्वामी गुरु होता है,लेकिन कारक राहु होता है.इस प्रकार से कुन्डली का निर्माण कर लेते है,और इसका भली भांति हाथ के बनायी कुन्डली से मिलाकर विचार करते है,लेकिन फ़लादेश कथन से पहले ग्रहों की प्रकृति पर विचार करना बहुत जरूरी होता है.
ग्रहों की प्रकृति

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