लक्ष्मी पूजा (दीपावली)
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क्या है लक्ष्मी पूजा (दीपावली)

भारत वर्ष देवभूमि है,इस धरती पर शक्तियों पर हमेशा से विश्वास किया जाता रहा है,शक्ति ही जीवन है,और जब शक्ति नही है तो जीवन भी निरर्थक है। जन्म से लेकर मृत्यु पर्यन्त विभिन्न प्रकार की शक्तियां मानव जीवन के साथ चलती है,शक्तियों के तालमेल से ही व्यक्ति आगे बढता है,नाम कमाता है,प्रसिद्धि प्राप्त करता है,जब शक्ति पर विश्वास नही होता है तो जीवन भी हवा के सहारे की तरह से चलता जाता है,और जरा भी विषम परिस्थिति पैदा होती है तो जीवन के लिये संकट पैदा हो जाते हैं।

किस प्रकार की शक्तियों का होना जरूरी है

हर व्यक्ति के लिये तीन प्रकार की शक्तियों को प्राप्त करना जरूरी होता है,पहली मानव शक्ति,दूसरी है भौतिक शक्ति,और तीसरी है देव शक्ति। मानव शक्ति भी दिखाई देती है,भौतिक शक्ति भी दिखाई देती है लेकिन देव शक्ति दिखाई नही देती है बल्कि अद्रश्य होकर अपना बल देती है।

कौन देवता किस शक्ति का मालिक है?

भगवान गणेशजी मानव शक्ति के प्रदाता है,माता लक्ष्मी भौतिक शक्ति की प्रदाता है और माता सरस्वती पराशक्ति यानी देव शक्ति की प्रदाता हैं,इन्ही तीन शक्तियों की पूजा का समय दीपावली के दिन प्राचीन काल से माना जाता रहा है।

दीपावली का त्यौहार कार्तिक कृष्ण-पक्ष की अमावस्या को ही मनाया जाता है

भारत मे तीन ऋतुओं का समय मुख्य माना जाता है,सर्दी गर्मी और बरसात,सर्दी की ऋतु कार्तिक अमावस्या से चैत्र की अमावस्या तक,गर्मी की ऋतु चैत्र अमावस्या से श्रावण अमावस्या तक,और बरसात की ऋतु श्रावण अमावस्या से कार्तिक अमावस्या तक मानी जाती है।बरसात के बाद सभी वनस्पतियां आकाश से पानी को प्राप्त करने के बाद अपने अपने फ़लों को दीवाली तक प्रदान करती है,इन वनस्पतियों के भण्डारण के समय की शुरुआत ही दीपावली के दिन से की जाती है,आयुर्वेद में दवाइयां और जीवन वर्धक वनस्पतियों को पूरी साल प्रयोग करने के लिये इसी दिन से भण्डारण करने का औचित्य ऋग्वेद के काल से किया जाता है। इसके अलावा उपरोक्त तीनो शक्तियों का समीकरण इसी दिन एकान्त वास मे बैठ कर किया जाता है,मनन और ध्यान करने की क्रिया को ही पूजा कहते है,एक समानबाहु त्रिभुज की कल्पना करने के बाद,साधन और मनुष्य शक्ति के देवता गणेशजी,धन तथा भौतिक सम्पत्ति की प्रदाता लक्ष्मीजी,और विद्या तथा पराशक्तियों की प्रदाता सरस्वतीजी की पूजा इसी दिन की जाती है। तीनो कारणों का समीकरण बनाकर आगे के व्यवसाय और कार्य के लिये योजनाओं का रूप दिया जाता है,मानव शक्ति और धन तथा मानवशक्ति के अन्दर व्यवसायिक या कार्य करने की विद्या तथा कार्य करने के प्रति होने वाले धन के व्यय का रूप ही तीनों शक्तियों का समीकरण बिठाना कहा जाता है। जैसे साधन के रूप में फ़ैक्टरी का होना,धन के रूप में फ़ैक्टरी को चलाने की क्षमता का होना,और विद्या के रूप में उस फ़ैक्टरी की जानकारी और पैदा होने वाले सामान का ज्ञान होना जरूरी है,साधन विद्या और लक्ष्मी तीनो का सामजस्य बिठाना ही दीपावली की पूजा कहा जाता है।

विभिन्न राशियों के विभिन्न गणेश,लक्ष्मी,और सरस्वती रूप

संसार का कोई एक काम सभी के लिये उपयुक्त नही होता है,प्रकृति के अनुसार अलग अलग काम अलग अलग व्यक्ति के लिये लाभदायक होते है,कोई किसी काम को फ़टाफ़ट कर लेता है और कोई जीवन भर उसी काम को करने के बाद भी नही कर पाता है,इस बाधा के निवारण के लिये ज्योतिष के अनुसार अगर व्यक्ति अपने काम और विद्या के साथ अपने को साधन के रूप में समझना शुरु कर दे तो वह अपने मार्ग पर निर्बाध रूप से आगे बढता चला जायेगा,व्यक्ति को मंदिर के भोग,अस्पताल में रोग और ज्योतिष के योग को समझे बिना किसी प्रकार के कार्य को नही करना चाहिये।आम आदमी को लुभावने काम बहुत जल्दी आकर्षित करते है,और वह उन लुभावने कामों के प्रति अपने को लेकर चलता है,लेकिन उसकी प्रकृति के अनुसार अगर वह काम नही चल पाता है तो वह मनसा वाचा कर्मणा अपने को दुखी कर लेता है। आगे हम आपको साधन रूपी गणेशजी,धन रूपी लक्ष्मी जी और विद्या रूपी सरस्वतीजी का ज्ञान करवायेंगे,कि वह किस प्रकार से केवल आपकी ही प्रकृति के अनुसार आपके लिये काम करेगी,और किस प्रकार से विरोधी प्रकृति के द्वारा आप को नेस्तनाबूद करने का काम कर सकती है।

मेष राशि के लिये गणेशजी का रूप

मेष राशि पराक्रम और शक्ति की प्रदायक है,अग्नि तत्व होने के कारण वीरता की परिचायक है,वीरता का भाव दाहिने भाग की निशानी है,गणेशजी की प्रतिमा का रूप दाहिनी तरफ़ की सूंड वाला होना लाभदायक है,मेष राशि का रंग लाल है,प्रतिमा का लाल रंग होना अनिवार्य है,मेष राशि का स्वामी मंगल है,इसलिये दाहिने हाथ में हथियार का होना अनिवार्य है, मेष राशि सिर की कारक है,इसलिये गणेशजी का सिर सजा होना जरूरी है,मेष राशि मंगल की राशि है इसलिये गणेशजी की प्रतिमा तांबे की होनी चाहिये। पुरुष कारक होने के कारण गणेश मंत्र "ऊँ गं गणपतये नम: स्वाहा" से पूरित होना चाहिये,दिन और रात की आठों याम की सुरक्षा के लिये और साधनो की बढोत्तरी के लिये १०८०० बार का जाप जरूरी है,शरीर से किये जाने वाले कामों के द्वारा संसार में नाम,धन और युगान्तर के नाम के लिये दक्षिण मुखी प्रतिमा का अनावरण भी जरूरी माना जाता है।

मेष राशि के लिये लक्ष्मी का रूप

मेष राशि में भौतिक धन के लिये वृष राशि है,वृष राशि का स्वामी शुक्र है,भौतिक धन अस्थिर है,शुक्र की दिशा अग्निकोण है,इसलिये गणेश प्रतिमा के दाहिनी तरफ़ हल्का सा अग्नि मुखी लक्ष्मी की प्रतिमा का होना जरूरी है,वृष राशि का रंग सफ़ेद है,इसलिये लक्ष्मी की प्रतिमा चांदी या सफ़ेद रंग की अथवा साधारण गृहस्थ के लिये रुई की बनी होनी चाहिये,स्थिर लक्ष्मी के लिये ग्यारहवें भाव में कुम्भ राशि होने के कारण और शनि की अर्धांग राशि होने के कारण स्लेटी रंग का आसन जिस पर राज्य का कारक गुलाबी और अथाह प्रसिद्धि के लिये नवें भाव की राशि धनु का रंग पीले से चौथे भाव में चन्द्रमा की कर्क राशि के लिये चावलों को रंग कर आठो दिशाओं की पूजा के लिये अष्टदल कमल का आसन जरूरी है।

मेष राशि के लिये सरस्वती का रूप

सरस्वती विद्या का रूप है,परा शक्ति का भान है,देव शक्ति को प्रदान करने वाली है,मेष राशि की तीसरे भाव से सरस्वती का रूप समझना जरूरी है,मेष से तीसरी बुध की राशि मिथुन राशि है,पुरुष रूप हंस और स्त्री रूप देवी का जोडा मिथुन का संगम है,आसन के लिये हरे रंग का दस दल कमल चावलों को पीला रंग कर उस पर बिठाने का अर्थ है कि दसों विद्याओं का पूजन किया जाना है। अक्षर "ह" को अगर लिटा दिया जाये तो समुद्र का भान होता है,और अक्षर "ह" के अन्दर अक्षर "र" का समावेश किया जाये तो "ह्र" अक्षर का निर्माण होता है,समुद्र के अन्दर तैरता हुआ "हंस" "ह्र" बीज का रूप है,और पूर्ण शक्ति को प्रदान करने के लिये बडी ई की मात्रा को लगाने के बाद बीज "ह्री" को जोडा जाता है,तथा अनन्त आकाश में प्रेषित करने के लिये "अं" का बिन्दु लगाकर बीज "ह्रीं" सरस्वती की लिये बनाया गया है,दस विद्याओं में यह बीज सर्वोपरि माना जाता है,इसलिये सरस्वती माता के मंत्र "ऊँ ह्रीं ऐं ह्रीं ऊँ सरस्वत्यै नम: स्वाहा" का जाप किया जाता है,दसों दिशाओं आठ गौढ और दो ऊपर नीचे की दिशाओं को जोड कर हर दिशा का यहीं मंत्र कार्य करता है। जाप संख्या १०८० एक बार में साधारण रूप से मानी गयी है।

वृष रशि के लिये लक्ष्मी का रूप

वृष राशि का स्वामी शुक्र है और शुक्र ही इस राशि वालो को कर्जा दुश्मनी बीमारी मे ले जाने वाला है। हमेशा ध्यान मे रखने वाली बात है कि नाम राशि और गोत्र ही सबसे अधिक भौतिक धन वाली बातों को मानने वाला होता है,लगन और जन्म की राशि परिवार और शरीर के लिये अपनी मान्यता रखती है। इस राशि वालों को अपनी पत्नी या अपने पति के प्रति श्रद्धा रखना ही सबसे बडी लक्ष्मी पूजा कहलाती है। दोहरी मानसिकता वाले ही अधिकतर कर्जा दुश्मनी और बीमारी के कारणों में जाते है। इस राशि को आजीवन जो लडाइयां लडनी होती है उनके अन्दर अपने जीवन साथी की मानसिकता से होती है जो साझेदार होते है उनके प्रति लडाइयां लडनी होती है।

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