आयुष्मती और आयुष्मान

शादी आत्मा की प्रकृति का मिलान है

प्रकृति पुरुष और स्त्री को पैदा करती है,जाति,शरीर की बनावट,शिक्षा,खानपान,व्यवहार,समाज और रहने वाला स्थान भाग्य पैदा करता है,भाग्य ही स्त्री और पुरुष दोनो को मिलाते है,पुरुष की कुन्डली में शुक्र और स्त्री की कुन्डली के लिये मंगल का प्रभा्व ध्यान में रखना बहुत ही जरूरी होता है,कभी कभी राहु का असर व्यक्ति के जीवन में भ्रान्तियां पैदा कर देता है,और भाग्य बनने के बावजूद भी दोनों की प्रकृति नही मिल पाती है,कितने ही मैरिज ब्यूरो देखे है,सुने है,उनका एक ही काम होता है,शिक्षा और उम्र को आपस में मिलाकर एक दूसरे का बायोडाटा भेजा करते है,तस्वीर और हकीकत में बहुत अन्तर होता है,तस्वीर को आजकल के कम्प्यूटर-चित्रण के द्वारा अच्छे से अच्छा बनाकर भेजा जा सकता है,सम्मोहन के द्वारा की गयी शादियों के प्रभाव के द्वारा ही अकेले भारत की अदालतों में करोडों केश अदालतों में विचाराधीन है,इन सबसे बचने का एक ही तरीका है कि शादी को शादी की तरह से समझा जाये,शादी को समझने के लिये स्त्री और पुरुष दोनों की आत्माओं को समझना जरूरी है,आत्मायें भी तीन प्रकार की होती है,पहली वैज्ञानिक आत्मा है, जो हर बात को प्रत्यक्ष देखना चाहती है,और केवल शादी को संभोग की द्रिष्टि से देखती है,उसे पूजा पाठ धर्म कर्म से कुछ लेना देना नही होता है,खाना पीना और ऐश करना उन आत्माओं वैचारिक भाव होता है,दूसरी महान आत्मायें हुआ करती है,उनका काम किसी भी स्थिति में रहकर केवल अपने द्वारा जन-कल्याण की भावना और पारिवारिक सुख शांति को बनाकर रखना होता है,पिता को पिता और माता को माता,तथा अलावा पारिवारिक लोगों को अपना हितैषी मानकर ही वे अपने जीवन को चलाना चाहते है,उनके लिये धर्म अर्थ काम और मोक्ष का प्रभाव समानान्तर रूप से होना अधिक फ़लदायी होता है,और इसके बिना अगर उनको अलावा किसी आत्मा के साथ किसी प्रकार के सामयिक बदलाव या कारण के द्वारा जोडा जाता है,तो या तो वे अपने जीवन को किसी भी कारण से समाप्त कर लेतीं है,या फ़िर वे अलग रहकर बाकी का जीवन किसी भी तरह से गुजारकर दूसरे जन्म की आशा करती है,तीसरी आत्मा भूतात्मा होती है,जो अपने किसी न किसी प्रकार के पिछले कर्मों का फ़ल भुगतवाने के लिये साथ जुडती है,और जैसे ही उनका कार्य पूरा होता है,वे किसी न किसी बहाने से जीवन के सफ़र में अपने जीवन साथी को अकेला छोडकर किनारा कर लेती है।

शादी के लिये मुख्य कारक

शास्त्रीय विधानों के द्वारा स्त्री और पुरुष की चार श्रेणियां रखी गयीं है,पहली पद्यमिनी और पद्य,दूसरी हस्तिनी और हस्त,तीसरी शंखिनी और शंख,चौथी घोरिनी और घोर। इनकी प्रकृति को समझने के लिये इनका विश्लेषण इस प्रकार से है-

हस्तिनी स्त्री का जन्म कर्क,मकर मेष और तुला राशियों में पैदा होती है,लेकिन इन सभी का नवांश या अंश कर्क राशि का होता है,इनकी शिफ़्त अधिक भावनात्मक होती है,और घर तथा परिवार के प्रति अधिक चिन्ता के कारण इनकी मज्जा शरीर में जमा होती रहती है,कालान्तर में इनका शरीर मोटा होता जाता है,इनके लिये इसी प्रकृति का पुरुष खोजने की आवश्यकता पडती है,अगर किसी प्रकार से इनके लिये किसी अन्य वर्ग का पुरुष खोज लिया जाये और शादी कर दी जाती है,तो कालान्तर में या तो पुरुष इनके लिये असहनीय हो जाता है,अथवा इनका दिमाग अधिक खाने पीने और कामुकता के अधिक उदय होने के कारण अनैतिकता व्याप्त हो जाती है।

पद्यमिनी स्त्री वर्ग सुकोमल और हर अच्छे बुरे को समझने वाली महिला के प्रति माना जाता है,वह शिक्षात्मक बातों पर अधिक ध्यान देती है,और जो भी करती है,किसी एक के हित के लिये नही सर्वजन हिताय का द्रिष्टिकोण उसके जेहन में रहता है,वह कभी किसी को अहिंसात्मक तरीके से नही प्रयोग करना चाहती है,उसके लिये सभी पुरुषार्थ समान होते है,कभी किसी एक उद्देश्य के लिये भागने वाली महिला नही होती है,उसका दिमाग सुबह से शाम तक कार्यात्मक रहता है,और रात के कामो से उसे डर लगता है,उसे पार्टी शराब या अन्य प्रकार के अनैतिक कामों से चिढ होती है,अगर किसी प्रकार की जबरदस्ती उसके साथ हो भी जाती है,तो वह या तो अपने जीवन को समाप्त कर लेती है,अथवा सामने को समाप्त करने के लिये एक उद्देश्य दिमाग में पालकर उससे गिन गिन कर बदले लेती है। ऐसे स्त्री का जन्म भले ही किसी भी लगन या नवांश में हुआ हो,लेकिन वह सिंह के नवांश या अंश का भाव अपनी प्रकृति में शामिल रखती है।

शंखिनी स्त्री का रूप एक दुबली पतली शरीर पर कभी चर्बी नही चढने वाली के रूप में माना जा सकता है,अधिक कामुकता उसके अन्दर होती है,और कालान्तर में बच्चे होने के बाद उसके अन्दर मज्जा का कुछ हिस्सा जमा होता है,जिसके फ़लस्वरूप वह हल्की सी मोटापे का शिकार होती है,कार्यात्मक शिक्षायें उसकी मजबूती का राज होती है,वह किसी भी माहौल में अपने को काम में लगाकर रखती है,अपनी अधिक मेहनत के कारण उसका सोने और खाने का समय कम ही लोग जान पाते है,वह कम बोलती है और अधिक करती है,कन्या संतान का अधिक उत्पन्न होना शंखिनी स्त्री की निशानी है,लेकिन इस का विवाह अगर इसी प्रकृति यानी शंख प्रकृति के व्यक्ति से किया जाये तो वह जीवन में अधिक प्रोग्रेस कर सकती है। इस प्रकार की स्त्रियों का जन्म शनि के अंश या नवांश में हुआ होता है।

घोरिनी का स्वभाव कार्यात्मक शैली कम और दूसरों के प्रति छिद्रान्वेषण की तरफ़ अधिक होता है,वह अधिकतर किसी अन्य के प्रति अपना अधिक ध्यान रखती है,अपनी बुराइयों को न देखकर दूसरों को प्रताणित करना उसका ध्येय होता है,चुगलखोरी करना,एक दूसरे को लडवाना,किसी न किसी प्रकार का डर परिवार में पैदा कर देना,किसी न किसी बात के चलते अपने खुद के परिवार को नीचा दिखा देना,फ़िर ससुराल खानदान की इज्जत को अपने पैरों तले कुचलना,कभी इस घर और कभी उस घर में बैठ कर एक दूसरे के प्रति जानकारी इकट्ठी करना,अपने घर को न देखकर दूसरों के घरों की जानकारी अधिक रखना इस प्रकार की आदतें मिलती है,किसी भी तरह का चरपरा खाना और तामसी वस्तुओं को प्रयोग करना उनकी शिफ़्त होती है,अधिक कामुकता के चलते नीच प्रकृति के कारण पर पुरुष से जल्दी से संबन्ध बना लेना,विभिन्न प्रकार के रोगों के कारण लगातार अस्पताल भागते रहना,दवाइयों से अपने घर को सजाये रखना,पति को किसी न किसी बात पर प्रताणित करते रहना,घर को हर समय साफ़ करने के लिये झाडू अपने पास रखना,किसी के प्रति गाली या लांक्षन लगाने में नही शरमाना,फ़ूहड तरीके से बात करना,किसी भी सज्जन की इज्जत एक मिनट में उतार कर रखदेना आदि कारण माने जाते है,इस प्रकार की स्त्रियों का जन्म अधिकतर राहु के नवांश में या अंश में होता है।

इसलिये किसी प्रकार की शादी को करने से पहले इनकी प्रकृति को समझना अधिक जरूरी है,इसके अलावा उन स्त्रियों का जीवन भी अलग अलग कारणो से बनता और बिगडता है,जैसे किसी ने अपनी पुत्री के पैदा होने के बाद मूल शांति नही करवायी है,और अभुक्त मूल नक्षत्र में पैदा होने के बाद अच्छे भले ग्रह योग के कारण भी मूल नक्षत्र का प्रभाव उसे विधवा बनाने और गृहस्थ जीवन को तहस नहस करने के लिये काफ़ी होता है,मूल शांति नही करवाने पर बालक या बालि्का का जीवन सातवें दिन सातवें माह सातवें साल पैदा होने के बाद और शादी के बाद अपना असर जरूर देता है,इसी प्रकार से मंगली दोष को भली प्रकार से समझे बिना किसी को भी मंगली घोषित करना और किसी प्रकार से मंगली दोष के समाप्त होने पर भी मंगली से शादी कर देना,उसका उदाहरण है कि अगर मंगल किसी प्रकार से शत्रु राशि में विराजमान है,अथवा मंगल पर शनि का प्रभाव है तो मंगली दोष समाप्त हो जाता है,साथ ही मंगल का दोष और प्रबल तब हो जाता है,जब सूर्य-बुध और मंगल किसी प्रकार से साथ में अपनी युति बना रहे होते है,कारण सूर्य और बुध मिलकर नकली मंगल नेक का रूप बन जाता है।

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